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बुधवार, 2 अक्टूबर 2019

भगवत गीता के किस श्लोक से आप सबसे ज्यादा प्रभावित है ? कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सग्ड़ोस्त्वकर्मणि। । यह श्लोक श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय से लिया गया, सर्वाधिक महत्वपूर्ण श्लोकों में से एक है. भावार्थ - केवल कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, लेकिन कर्म के फलों पर तुम्हारा अधिकार नहीं है. इसलिए सिर्फ फल पाने की इच्छा से कर्म मत करो और ना ही कर्म करने में तुम्हारी आसक्ति निहित होनी चाहिए.श्री कृष्ण ने धनुर्धारी अर्जुन को यह उपदेश कुरुक्षेत्र के मैदान में उस वक्त दिया था, जब अर्जुन युद्ध-क्षेत्र में अपने बंधु-बांधवों को देखकर अपने कर्म से विमुख हो गए थे. श्री कृष्ण के उपदेश के बाद अर्जुन अपना कर्तव्य समझ सके थे. इसके पश्चात उन्होंने युद्ध प्रारंभ किया. जिसमें सत्य व कर्म की विजय हुई. श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में मनुष्य मात्र को उपदेश दिया कि 'कर्म करो फल की चिंता मत करो'. फल की इच्छा रखते हुए जब कर्म करते हैं और इच्छित फल प्राप्त नहीं होता, तो हम दुख व शोक में डूब जाते हैं. इसलिए सुखी जीवन चाहते हो तो निष्काम भाव से कर्म करना जारी रखो. कर्म ना भूल जाएं एक बार देवताओं की श्रेष्ठता की लड़ाई में देवराज इंद्र रुष्ट हो गए व उन्होंने 12 वर्षों तक पृथ्वी पर वर्षा न करने का निर्णय लिया. लेकिन उन्होंने देखा कि बारिश न होने पर भी किसान हल जोत रहे हैं, मेंढक टर्रा रहे हैं, मोर नाच रहे हैं. सभी अपना कार्य कर रहे हैं. विस्मित भाव से इंद्र ने उनसे इसका कारण पूछा कि जब बारिश नहीं होने वाली, तो तुम सब अपना कार्य क्यों कर रहे हो? तो किसान ने जवाब दिया, "अगर हम कर्म नहीं करेंगे, तो हम हमारा काम भूल जाएंगे. कर्म ही हमारे लिए पूजा है. कर्म करना भूल गए तो हम हमारी नई पीढ़ी को क्या सिखाएंगे? जब वर्षा होगी तो हमें उस समय खेती करने का तरीका याद नहीं रहेगा." यह सुनकर देवराज इंद्र की आंखें खुल गई. उन्होने सोचा अगर मैं भी बारिश करना भूल गया तो क्या होगा? इसका परिणाम सोचते ही इंद्र ने बादलों को बरसने का आदेश दे दिया

भगवत गीता के किस श्लोक से आप सबसे ज्यादा प्रभावित है ?

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सग्ड़ोस्त्वकर्मणि। ।

यह श्लोक श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय से लिया गया, सर्वाधिक महत्वपूर्ण श्लोकों में से एक है.

भावार्थ - केवल कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, लेकिन कर्म के फलों पर तुम्हारा अधिकार नहीं है. इसलिए सिर्फ फल पाने की इच्छा से कर्म मत करो और ना ही कर्म करने में तुम्हारी आसक्ति निहित होनी चाहिए.श्री कृष्ण ने धनुर्धारी अर्जुन को यह उपदेश कुरुक्षेत्र के मैदान में उस वक्त दिया था, जब अर्जुन युद्ध-क्षेत्र में अपने बंधु-बांधवों को देखकर अपने कर्म से विमुख हो गए थे.

श्री कृष्ण के उपदेश के बाद अर्जुन अपना कर्तव्य समझ सके थे. इसके पश्चात उन्होंने युद्ध प्रारंभ किया. जिसमें सत्य व कर्म की विजय हुई.


श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में मनुष्य मात्र को उपदेश दिया कि 'कर्म करो फल की चिंता मत करो'. फल की इच्छा रखते हुए जब कर्म करते हैं और इच्छित फल प्राप्त नहीं होता, तो हम दुख व शोक में डूब जाते हैं. इसलिए सुखी जीवन चाहते हो तो निष्काम भाव से कर्म करना जारी रखो.

कर्म ना भूल जाएं

एक बार देवताओं की श्रेष्ठता की लड़ाई में देवराज इंद्र रुष्ट हो गए व उन्होंने 12 वर्षों तक पृथ्वी पर वर्षा न करने का निर्णय लिया. लेकिन उन्होंने देखा कि बारिश न होने पर भी किसान हल जोत रहे हैं, मेंढक टर्रा रहे हैं, मोर नाच रहे हैं. सभी अपना कार्य कर रहे हैं.



विस्मित भाव से इंद्र ने उनसे इसका कारण पूछा कि जब बारिश नहीं होने वाली, तो तुम सब अपना कार्य क्यों कर रहे हो? तो किसान ने जवाब दिया, "अगर हम कर्म नहीं करेंगे, तो हम हमारा काम भूल जाएंगे. कर्म ही हमारे लिए पूजा है. कर्म करना भूल गए तो हम हमारी नई पीढ़ी को क्या सिखाएंगे? जब वर्षा होगी तो हमें उस समय खेती करने का तरीका याद नहीं रहेगा."

यह सुनकर देवराज इंद्र की आंखें खुल गई. उन्होने सोचा अगर मैं भी बारिश करना भूल गया तो क्या होगा? इसका परिणाम सोचते ही इंद्र ने बादलों को बरसने का आदेश दे दिया

दक्षिणा ” देने से ही क्यों मिलता है धार्मिक कर्मों का फल.🎍 बहुत मेहनत और खोजने के बाद ये मिला है कृपया पूरी पोस्ट पढ़ने का कष्ट करें।

🎍” दक्षिणा ” देने से ही क्यों मिलता है धार्मिक कर्मों का फल.🎍
बहुत मेहनत और खोजने के बाद ये मिला है कृपया पूरी पोस्ट पढ़ने का कष्ट करें।
यजुर्वेद में एक बहुत सुंदर मन्त्र(१) है, वह कहता है ब्रह्मचर्य आदि व्रतों से ही दीक्षा प्राप्त होती है अर्थात् ब्रह्मविद्या या किसी अन्य विद्या में प्रवेश मिलता है। फिर दीक्षा से दक्षिणा अर्थात् धन समृद्धि आदि प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। यहाँ दक्षिणा मिलने का अर्थ है दक्षिणा देना, वेद ने यही माना है कि जो देता है उसे देवता और अधिक देते हैं। जो नहीं देता है, देवता उसका धन छीनकर दानियों को ही दे देते हैं।(२) फिर कहता है दक्षिणा से श्रद्धा प्राप्त होती है, और श्रद्धा से सत्य प्राप्त होता है।क्रम है, व्रत –> दीक्षा –> दक्षिणा –> श्रद्धा –> सत्य।मध्य में दक्षिणा है, एक बार दीक्षित हो गए, मार्ग पर बढ़ गए, और फिर दक्षिणा में लोभ किया तो मार्ग नष्ट हो जाता है। इसलिए विद्वानों, गुरु, आचार्य को दक्षिणा और पात्रों को दान देने से ही मार्ग आगे प्रशस्त होता है। दक्षिणा देने से अपने गुरु, आचार्य में श्रद्धा बढ़ती है। गुरु भी अपनी अन्य सांसारिकचिंताओं से मुक्ति पाकर शिष्य या यजमान के कल्याण के लिए और उत्साह से लग जाते हैं और अंततः सत्य से साक्षात्कार कराते हैं।
अब दक्षिणा क्या होनी चाहिए, इसपर शास्त्र का स्पष्ट मत है कि दक्षिणा यथाशक्ति, यथासम्भव ही होनी चाहिए। न अपनी शक्ति से कम होनी चाहिएन ज्यादा की कोई आवश्यकता है।सनातन धर्म की समाज संरचना ऐसी थी कि अपरिग्रही ब्राह्मणों, पुरोहितों, ज्योतिष आदि आचार्यों का दायित्व समाज के ऊपर था। समाज उन्हें अपने सामर्थ्यानुसार दक्षिणा द्वारा पोषित करता था। बदले में वे समाज को अपने ज्ञान से पोषित करते थे।पर जैसे ही यजमान में कृपणता आई और आचार्य में लोभ आया वैसे ही यह व्यवस्था टूट गई। इससे हानि हुई कि जिनका कार्य पुरोहित बनकर कर्मकाण्ड कराना था, गुरु बनकर पढ़ाना लिखाना था, ज्योतिषाचार्य बनकर लोगों को जीवन के प्रति सचेत करके मार्ग दिखाना था, उन्हें यजमानों से उचित दक्षिणा न मिलने के कारण अपना घर चलाने के लिए दूसरे व्यवसायों अपनानेपड़े और इन विद्याओं का नाश हुआ।आज सब लोग एक पक्षीय रूप से तो देखते हैं कि ब्राह्मण पौरोहित्य ठीक नहीं करते, ज्योतिषी लूटते हैं और झूठ बताते हैं; लेकिन वे खुद का दोष नहीं देखते कि क्या यजमान धर्म का उन्होंने पालन किया? क्या यथाशक्ति, यथासम्भववे इन आचार्यों को दक्षिणा देते हैं?आपके कोई जानपहचान के ज्योतिषी हैं तो आप चाहते हैं कि उन्हें मुफ्त में कुण्डली दिखा दें, उनसे इमोशनल अत्याचार करते हैं। यह नहीं देखते कि ज्योतिष विद्या प्राप्त करने के लिएकितने हज़ार घण्टे उन्होंने अध्ययन की तपस्या की होगी। वे आपकी कुण्डली को समझने में जो एक दो घण्टे खर्च करते हैं आप चाहते हैं उसकी कीमत 11, 51, या 101 रुपए दे दें। घर में कोई पूजापाठ है तो आप चाहते हैं कि 101 रुपए में पण्डित मान जाए। वह आपके घर दूर से एक दो घण्टे खर्च करके आता जाता है, 2 घण्टे खर्च करके पूजा कराकर अपना पूरा दिन खर्च करता है और बदले में 101, 151 रुपए में आप उसे विदा करना चाहते हैं।क्या यह आपकी यथाशक्ति-यथासम्भव है? यदि सब लोग उन पुरोहितों या ज्योतिषियों को बस 101 रुपया ही दें तो हर पर 2 घण्टे लगाकर वह केवल 5-6 लोगों की कुंडली या पूजापाठ ही तो करा पाएगा? इससे महीने में 500 प्रतिदिन हिसाब से केवल 15 हज़ार या कुछ अधिक होंगे। इसमें वह अपना घर कैसे चलाएगा? और शांति से नहीं चला पाएगा तो अपनी विद्या और यजमान पर ध्यान कैसे देगा? फिर जब वह मजबूरी में अपनी दक्षिणा फिक्स करे तो आप उसे पाखण्डी धंधेबाज कहते हो? यह क्या खुद का फोड़ा न देखकर दूसरे की सूजन निहारने वाली बात नहीं है?

आप ज्योतिषी से तो उम्मीद करते हैं कि वह पाराशर स्मृति के अनुसार चलकर दक्षिणा न मांगे पर जब वही शास्त्र ज्योतिष आदि विद्याओं के लिए यथाशक्ति दक्षिणा देने की बात कहते हैं तो उसे नहीं मानते। तब आप 11 रुपए देकर कहते हैं बिना दक्षिणा दिए पाप लगता है पण्डितजी यह रख लीजिए। अरे 11 रुपए का एक ज्यूस भी नहीं आता है, क्यों उन जानपहचान के ज्योतिषियों और पुरोहितों को अपमानित करते हैं 11 रुपए देकर?? क्यों खुद के सिर पाप चढाते हैं। वेद ने स्पष्ट कहा है, “इन्द्र ऐसे कृपण/कंजूस लोगों को पैर से घास फूंस की तरह रौंद देता है।”(३)मैं यह नहीं कह रहा कि सभी ज्योतिषी बहुत विद्वान या सारे ही पुरोहित बहुत अच्छे हैं। पर उनमें कई वास्तव में अच्छे हैं जिन्हें समाज हतोत्साहित करता है। ऐसे में वे अपने अध्ययन पर ध्यान नहीं दे पाते। उन्हें भी अपनी सांसारिक जरूरतें पूरी करने के लिए दूसरे रास्ते अपनाने पड़ते हैं। असंतुष्ट होकरआचार्य कभी भी कृपा नहीं कर सकते। सच्चे मन, पूर्ण विश्वास और उन्हें संतुष्टि देकर ही उनकी कृपा प्राप्त की जा सकती है। उनके द्वारा बताए गए उपाय भी तभी सफल होते हैं।पुराणों में एक कथा आती है, नारद जी ने प्रश्न किया कि दक्षिणाहीन कर्म का फल कौन भोगता है? तो भगवान नारायण ने उत्तर दिया,“मुने! दक्षिणाहीन कर्म में फल ही कैसे हो सकता है? क्योंकि फल प्रसव करने की योग्यता तो दक्षिणावाले कर्म में ही है। बिना दक्षिणा वाला कर्म तो बलि के पेट में चला जाता है, अर्थात् नष्ट हो जाता है।(४)आचार्यों से वैदिक विद्याओं का प्रयोग करवाना, पौरोहित्य करवाना आदि यज्ञ का अंग है।मनुस्मृति में महाराज मनु का स्पष्ट शब्दों में आदेश है,।
“और पुण्य कर्मों को करे पर कम धन वाला यज्ञ न करे। न्यून/कम दक्षिणा देकर कोई यज्ञ नहीं करना चाहिए। कम दक्षिणा देकर यज्ञ कराने से यज्ञ की इन्द्रियाँ, यश, स्वर्ग, आयु, कीर्ति, प्रजा और पशुओं का नाश करती हैं।”(५)
अन्यत्र भी कहा है,“दक्षिणाहीन यज्ञ दीक्षित को नष्ट करदेता है।”(६)वेद में भी कहा गया है,“प्रयत्न से उत्तम कर्म करने वाले के लिए जो योग्य दक्षिणा देता है, अग्नि उस मनुष्य की चारों ओर से सुरक्षा करता है।”(७)“कंजूस कभी भी ज्ञानसम्पन्न नहीं हो सकते, वे सदा ही अंधकार में ठोकर खातेफिरेंगे। जो यज्ञ के कार्य के लिए अपना धन समर्पित करते हैं, वे उन्नति करते हैं और अदानशील व्यक्ति नष्ट होजाते हैं।”(८)

इसलिए वैदिक विद्याओं को बचाने के लिए, सनातन धर्म की रक्षा के लिए केवल दोषारोपण न करें। आपके लिए वैदिक विद्या का प्रयोग करने वाले आचार्यों, अन्य योग्य सनातनी संस्थाओं और व्यक्तियों को उचित दान दक्षिणा देने में कंजूसी न करें। बहुत सी ऐसी जगहें हैं जहाँ धनबचा लेंगे। फालतू जगहों पर कंजूसी करेंगे तो धन बढ़ेगा, वैदिक विद्या और धर्म के कार्य में कंजूसी करेंगे तो धन घटेगा। इधर तो देने से हीबढ़ता है। इसमें शास्त्रों का स्पष्ट निर्देश है।

सन्दर्भ {सोजन्य से (लिया गया है)}  :१. यजुर्वेद 19.30
२. ऋग्वेद 5.34.7
३. अथर्ववेद 20.63.5/ऋग्वेद 1.84.8
४. ब्रह्मवैवर्त पुराण, प्रकृति खण्ड, अध्याय 42
५. मनुस्मृति 11.39/40
६. स्कन्दपुराण 5.33.27
७. ऋग्वेद 1.31.15
८. ऋग्वेद 4.51.3
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मंगलवार, 17 सितंबर 2019

चाणक्य के अनुसार इस तरह के व्यक्तियों के पास कभी नहीं ठहरता धन

चाणक्य के अनुसार इस तरह के व्यक्तियों के पास कभी नहीं ठहरता धन !



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चाणक्य के अनुसार आज हम आपको बताएंगे कि किन लोगों के पास लक्ष्मी नहीं ठहरती।


चाणक्य के अनुसार कठोर वाणी बोलने वाले के पास कभी भी लक्ष्मी नहीं ठहरती कड़वे वचन बोलने वाले के पास कभी भी लक्ष्मी नहीं रुकती।

गंदे मेले कपड़े पहनने वाली व्यक्ति के पास लक्ष्मी कभी भी स्थिर नहीं रहती या उसके पास लक्ष्मी आती ही नहीं है।

सूर्योदय होने के पश्चात भी जो सोता रहता है अपनी नींद से नहीं जागता बिस्तर में ही पड़ा रहता है उसके पास लक्ष्मी बिल्कुल भी नहीं आती और ना ही उसके पास लक्ष्मी रूकती है।

अत्यधिक भोजन ग्रहण करने वाली व्यक्ति के पास जो व्यक्ति पेटू होता है उसके पास धनलक्ष्मी बिल्कुल भी नहीं ठहरती हजारों साल पहले आचार्य चाणक्य के द्वारा यह कुछ बातें बताई गई थी इन बातों पर लोग आज भी विश्वास करते हैं।

शनिवार, 14 सितंबर 2019

*शयन के नियम :-* 1. *सूने तथा निर्जन* घर में अकेला नहीं सोना चाहिए। *देव मन्दिर* और *श्मशान* में भी नहीं सोना चाहिए। *(मनुस्मृति)* 2. किसी सोए हुए मनुष्य को *अचानक* नहीं जगाना चाहिए। *(विष्णुस्मृति)* 3. *विद्यार्थी, नौकर औऱ द्वारपाल*, यदि ये अधिक समय से सोए हुए हों, तो *इन्हें जगा* देना चाहिए। *(चाणक्यनीति)* 4. स्वस्थ मनुष्य को आयुरक्षा हेतु *ब्रह्ममुहुर्त* में उठना चाहिए। *(देवीभागवत)* बिल्कुल *अँधेरे* कमरे में नहीं सोना चाहिए। *(पद्मपुराण)* 5. *भीगे* पैर नहीं सोना चाहिए। *सूखे पैर* सोने से लक्ष्मी (धन) की प्राप्ति होती है। *(अत्रिस्मृति)* टूटी खाट पर तथा *जूठे मुँह* सोना वर्जित है। *(महाभारत)* 6. *"नग्न होकर/निर्वस्त्र"* नहीं सोना चाहिए। *(गौतम धर्म सूत्र)* 7. पूर्व की ओर सिर करके सोने से *विद्या*, पश्चिम की ओर सिर करके सोने से *प्रबल चिन्ता*, उत्तर की ओर सिर करके सोने से *हानि व मृत्यु* तथा दक्षिण की ओर सिर करके सोने से *धन व आयु* की प्राप्ति होती है।   *(आचारमय़ूख)* 8. दिन में कभी नहीं सोना चाहिए। परन्तु *ज्येष्ठ मास* में दोपहर के समय 1 मुहूर्त (48 मिनट) के लिए सोया जा सकता है। (दिन में सोने से रोग घेरते हैं तथा आयु का क्षरण होता है) 9. दिन में तथा *सूर्योदय एवं सूर्यास्त* के समय सोने वाला रोगी और दरिद्र हो जाता है। *(ब्रह्मवैवर्तपुराण)* 10. सूर्यास्त के एक प्रहर (लगभग 3 घण्टे) के बाद ही *शयन* करना चाहिए। 11. बायीं करवट सोना *स्वास्थ्य* के लिये हितकर है। 12. दक्षिण दिशा में *पाँव करके कभी नहीं सोना चाहिए। यम और दुष्ट देवों* का निवास रहता है। कान में हवा भरती है। *मस्तिष्क* में रक्त का संचार कम को जाता है, स्मृति- भ्रंश, मौत व असंख्य बीमारियाँ होती है। 13. हृदय पर हाथ रखकर, छत के *पाट या बीम* के नीचे और पाँव पर पाँव चढ़ाकर निद्रा न लें। 14. शय्या पर बैठकर *खाना-पीना* अशुभ है। 15. सोते सोते *पढ़ना* नहीं चाहिए। *(ऐसा करने से नेत्र ज्योति घटती है )* 16. ललाट पर *तिलक* लगाकर सोना *अशुभ* है। इसलिये सोते समय तिलक हटा दें। *इन १६ नियमों का अनुकरण करने वाला यशस्वी, निरोग और दीर्घायु हो जाता है।* *जय श्री राधे ओम नमो नारायण जी बाल व्यास पं: चंद्रकांत शास्त्री जी महाराज* नोट :- यह सन्देश जन जन तक पहुँचाने का प्रयास करें। ताकि सभी लाभान्वित हों

*शयन के नियम :-*

1. *सूने तथा निर्जन* घर में अकेला नहीं सोना चाहिए। *देव मन्दिर* और *श्मशान* में भी नहीं सोना चाहिए। *(मनुस्मृति)*

2. किसी सोए हुए मनुष्य को *अचानक* नहीं जगाना चाहिए। *(विष्णुस्मृति)*

3. *विद्यार्थी, नौकर औऱ द्वारपाल*, यदि ये अधिक समय से सोए हुए हों, तो *इन्हें जगा* देना चाहिए। *(चाणक्यनीति)*

4. स्वस्थ मनुष्य को आयुरक्षा हेतु *ब्रह्ममुहुर्त* में उठना चाहिए। *(देवीभागवत)* बिल्कुल *अँधेरे* कमरे में नहीं सोना चाहिए। *(पद्मपुराण)*

5. *भीगे* पैर नहीं सोना चाहिए। *सूखे पैर* सोने से लक्ष्मी (धन) की प्राप्ति होती है। *(अत्रिस्मृति)* टूटी खाट पर तथा *जूठे मुँह* सोना वर्जित है। *(महाभारत)*

6. *"नग्न होकर/निर्वस्त्र"* नहीं सोना चाहिए। *(गौतम धर्म सूत्र)*

7. पूर्व की ओर सिर करके सोने से *विद्या*, पश्चिम की ओर सिर करके सोने से *प्रबल चिन्ता*, उत्तर की ओर सिर करके सोने से *हानि व मृत्यु* तथा दक्षिण की ओर सिर करके सोने से *धन व आयु* की प्राप्ति होती है।   *(आचारमय़ूख)*

8. दिन में कभी नहीं सोना चाहिए। परन्तु *ज्येष्ठ मास* में दोपहर के समय 1 मुहूर्त (48 मिनट) के लिए सोया जा सकता है। (दिन में सोने से रोग घेरते हैं तथा आयु का क्षरण होता है)

9. दिन में तथा *सूर्योदय एवं सूर्यास्त* के समय सोने वाला रोगी और दरिद्र हो जाता है। *(ब्रह्मवैवर्तपुराण)*

10. सूर्यास्त के एक प्रहर (लगभग 3 घण्टे) के बाद ही *शयन* करना चाहिए।

11. बायीं करवट सोना *स्वास्थ्य* के लिये हितकर है।

12. दक्षिण दिशा में *पाँव करके कभी नहीं सोना चाहिए। यम और दुष्ट देवों* का निवास रहता है। कान में हवा भरती है। *मस्तिष्क* में रक्त का संचार कम को जाता है, स्मृति- भ्रंश, मौत व असंख्य बीमारियाँ होती है।

13. हृदय पर हाथ रखकर, छत के *पाट या बीम* के नीचे और पाँव पर पाँव चढ़ाकर निद्रा न लें।

14. शय्या पर बैठकर *खाना-पीना* अशुभ है।

15. सोते सोते *पढ़ना* नहीं चाहिए। *(ऐसा करने से नेत्र ज्योति घटती है )*

16. ललाट पर *तिलक* लगाकर सोना *अशुभ* है। इसलिये सोते समय तिलक हटा दें।

*इन १६ नियमों का अनुकरण करने वाला यशस्वी, निरोग और दीर्घायु हो जाता है।*

*जय श्री राधे ओम नमो नारायण जी बाल व्यास पं: चंद्रकांत शास्त्री जी महाराज*

नोट :- यह सन्देश जन जन तक पहुँचाने का प्रयास करें। ताकि सभी लाभान्वित हों

मंगलवार, 10 सितंबर 2019

*धीरे-धीरे एक एक शब्द पढियेगा, हर एक वाक्य में कितना दम है ।* *"आंसू" जता देते है, "दर्द" कैसा है?* *"बेरूखी" बता देती है, "हमदर्द" कैसा है?* *"घमण्ड" बता देता है, "पैसा" कितना है?* *"संस्कार" बता देते है, "परिवार" कैसा है?* *"बोली" बता देती है, "इंसान" कैसा है?* *"बहस" बता देती है, "ज्ञान" कैसा है?* *"ठोकर" बता देती है, "ध्यान" कैसा है?* *"नजरें" बता देती है, "सूरत" कैसी है?* *"स्पर्श" बता देता है, "नीयत" कैसी है?* *और "वक़्त" बता देता है, "रिश्ता" कैसा समाज में बदलाव क्यों नहीं आता क्योंकि गरीब मैं हिम्मत नहीं मध्यम को फुर्सत नहीं और अमीर को जरूरत नहीं *सुबह की "चाय" और बड़ों की "राय"* समय-समय पर लेते रहना चाहिए..... *पानी के बिना, नदी बेकार है* अतिथि के बिना, आँगन बेकार है।* *प्रेम न हो तो, सगे-सम्बन्धी बेकार है।* पैसा न हो तो, पाकेट बेकार है। *और जीवन में गुरु न हो* तो जीवन बेकार है। इसलिए जीवन में *"गुरु"जरुरी है।* *"गुरुर" नही"* *जीवन में किसी को रुलाकर* *हवन भी करवाओगे तो* *कोई फायदा नहीं* 🌼🌿🌼🌿🌼🌿🌼 *और अगर रोज किसी एक* *आदमी को भी हँसा दिया तो* *मेरे दोस्त* *आपको अगरबत्ती भी* *जलाने की जरुरत नहीं* 🌿🌸🌿🌸🌿🌸🌿🌸 *कर्म ही असली भाग्य है*

*धीरे-धीरे एक एक शब्द पढियेगा,   हर एक वाक्य में कितना दम है ।*

*"आंसू" जता देते है, "दर्द" कैसा है?*
*"बेरूखी" बता देती है, "हमदर्द" कैसा है?*

*"घमण्ड" बता देता है, "पैसा" कितना है?*
*"संस्कार" बता देते है, "परिवार" कैसा है?*

*"बोली" बता देती है, "इंसान" कैसा है?*
*"बहस" बता देती है, "ज्ञान" कैसा है?*

*"ठोकर" बता देती है, "ध्यान" कैसा है?*
*"नजरें" बता देती है, "सूरत" कैसी है?*

*"स्पर्श" बता देता है, "नीयत" कैसी है?*
*और "वक़्त" बता देता है, "रिश्ता" कैसा समाज में बदलाव क्यों नहीं आता क्योंकि गरीब मैं हिम्मत नहीं मध्यम को फुर्सत नहीं और अमीर को जरूरत नहीं
          
*सुबह की "चाय" और बड़ों की "राय"*
     समय-समय पर लेते रहना चाहिए.....
       *पानी के बिना, नदी बेकार है*
     अतिथि के बिना, आँगन बेकार है।*
  *प्रेम न हो तो, सगे-सम्बन्धी बेकार है।*
       पैसा न हो तो, पाकेट बेकार है।
           *और जीवन में गुरु न हो*
               तो जीवन बेकार है।
                इसलिए जीवन में
                  *"गुरु"जरुरी है।*
                  *"गुरुर" नही"*

   
*जीवन में किसी को रुलाकर*
    *हवन भी करवाओगे तो*
       *कोई फायदा नहीं*
🌼🌿🌼🌿🌼🌿🌼
*और अगर रोज किसी एक*
*आदमी को भी हँसा दिया तो*
             *मेरे दोस्त*
     *आपको अगरबत्ती भी*
   *जलाने की जरुरत नहीं*
🌿🌸🌿🌸🌿🌸🌿🌸
       *कर्म ही असली भाग्य है*

मंगलवार, 27 अगस्त 2019

एक भंवरे की मित्रता एक आध्यात्मिक ज्ञान की बात

*एक भंवरे की मित्रता एक गोबरी (गोबर में रहने वाले) कीड़े से थी ! एक दिन कीड़े ने भंवरे से कहा- भाई तुम मेरे सबसे अच्छे मित्र हो, इसलिये मेरे यहाँ भोजन पर आओ!*

*भंवरा भोजन खाने पहुँचा! गोबर खाना पड़ा! अब भंवरे ने कीड़े को अपने यहां आने का निमंत्रन दिया कि तुम कल मेरे यहाँ आओ!*

*अगले दिन कीड़ा भंवरे के यहाँ पहुँचा! भंवरे ने कीड़े को उठा कर गुलाब के फूल में बिठा दिया! कीड़े ने परागरस पिया! मित्र का धन्यवाद कर ही रहा था कि पास के मंदिर का पुजारी आया और फूल तोड़ कर ले गया और बिहारी जी के चरणों में चढा दिया! कीड़े को ठाकुर जी के दर्शन हुये! चरणों में बैठने का सौभाग्य भी मिला! संध्या में पुजारी ने सारे फूल इक्कठा किये और गंगा जी में छोड़ दिए! कीड़ा अपने भाग्य पर हैरान था! इतने में भंवरा उड़ता हुआ कीड़े के पास आया, पूछा-मित्र! क्या हाल है? कीड़े ने कहा-भाई! जन्म-जन्म के पापों से मुक्ति हो गयी! ये सब अच्छी संगत का फल है!*
   *संगत से गुण ऊपजे, संगत से गुण जाए*
   *लोहा लगा जहाज में ,  पानी में उतराय!*

*कोई भी नही जानता कि हम इस जीवन के सफ़र में एक दूसरे से क्यों मिलते है,*
*सब के साथ रक्त संबंध नहीं हो सकते परन्तु ईश्वर हमें कुछ लोगों के साथ मिलाकर अद्भुत रिश्तों में बांध देता हैं,हमें उन रिश्तों को हमेशा संजोकर रखना चाहिए।*
*🌷जय श्री कृष्ण🌹*

शनिवार, 17 अगस्त 2019

मयूर पंख (एक आध्यात्मिक कहानी हिंदी में ) पसन्द आये तो अपने दोस्तों को शेयर करें

🦚 ।। *मयूर  पंख* ।।🦚

      वनवास के दौरान माता सीताजी को पानी की प्यास लगी ,तभी श्री रामजीने चारों ओर देखा तो उनको दूर-दूर तक जंगल ही जंगल दिख रहा था। कुदरत से प्रार्थना करी। हे जंगलजी आसपास जहां कही पानी हो वहां जाने का मार्ग कृपया सुझाईये ।तभी वहां एक मयुरने आ कर  श्री रामजी से कहा कि आगे थोड़ी दूर पर एक जलाशय है ।चलिए मैं आपका मार्ग पथ प्रदर्शक बनता हूं । किंतु मार्ग में हमारी भूल चूक होने की संभावना है ।श्री रामजी ने पूछा वह क्यों ? तब मयूर ने उत्तर दिया कि मैं उड़ता हुआ जाऊंगा और आप चलते  हुए आएंगे ।इसलिए मार्गमें मैं अपना एक एक पंख बिखेरता हुआ जाऊंगा ।उस के सहारे आप जलाशय तक पहुंची हि जाओगे ।
           यह बात को हम सभी जानते हैं कि मयूर के पंख, एक विशेष समय एवं एक विशेष ऋतु में ही बिखरते हैं ।अगर वह अपनी इच्छा विरुद्ध पंखों को बिखेरेगा तो उसकी मृत्यु हो जाती है । वही हुआ ।अंत में जब मयुर अपनी अंतिम सांस ले  रहा  होता है... उसने कहा कि वह कितना भाग्यशाली है की जो जगत की प्यास बुझाते हैं ऐसे प्रभु की प्यास बुझाने का उसे सौभाग्य प्राप्त हुआ । मेरा जीवन धन्य हो गया।अब  मेरी कोई भी इच्छा शेष नहीं रही । तभी भगवान श्री रामने मयुर से कहा की, मेरे लिए तुमने जो मयूर पंख बिखेरकर, मुझ पर जो ऋणानुबंध चढ़ाया है ,मैं उस  ऋण को अगले जन्म में जरूर चुकाऊंगा। मेरे सर पर आपको चढ़ाकर ।
         तत्पश्चात अगले जन्म में श्री कृष्ण अवतार में उन्होंने अपने माथे पर मयूर पंखको धारण कर वचन अनुसार उस मयुरका ऋण उतारा था।
        तात्पर्य यही है कि अगर भगवान को ऋण उतारने के लिए पुनः जन्म लेना पड़ता है, तो हम तो मानव है।न जाने हम तो कितने ही ऋणानुबंधसे बंधे हैं । उसे उतारने के लिए हमें तो कई जन्मभी कम पड़ जाएंगे।
         अर्थात अपना जो भी भला हम कर सकते हैं इसी जन्म में हमे करना है। ऋणानुबंध से मुक्ति  पाने हेतु आत्मसाक्षात्कार द्वारा ध्यान मार्ग अपनाकर, श्री योगेश्वर के मध्यमार्ग द्वारा  श्री सदाशिव में विलीन हो जायें एवं मोक्ष पाकर सभी ऋणनुबंध से मुक्ति पाएं।
         ...।। अस्तु ।।

सोमवार, 12 अगस्त 2019

धर्म ग्रन्थ में भी साफ़ नहीं लिखा है शिव भगवान की इन पांच चीज़ों का बारें में   भोलेनाथ बड़ी ही सरलता से प्रसन्न हो जाते है। यदि देखा जाए तो अन्य देवी देवताओं से भोलेनाथ का जीवन बिल्कुल भिन्न है। इतना ही नही इनके जन्म के विषय में किसी भी धर्म ग्रन्थ में स्पष्ट रूप से नही लिखा है। आइये जाने भगवान शिव के पांच अनोखे रहस्य के विषय मे। तीन नेत्र  भोलेनाथ के द्वारा दिये गए निर्देशो से ही ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। भगवान शिव से भूत, भविष्य, वर्तमान कुछ नही छुपा है। वो बातें जिन्हें हम देख और समझ नही पाते वो बात शिव जी से छिप नही सकती। त्रिशूल  भगवान शिव का त्रिशूल के 3 भाग मानव के अंदर के भौतिक, दैहिक और दैविक पापों को नष्ट करके जीवन अर्ल बनाता है। भगवान शिव त्रिशूल से ही अधर्मी और असुरों का वध करते है। सर्प  सभी देवी देवता जहाँ गले मे पुष्प की माला धारण करते है वहीं भगवान शिव शंकर गले मे वासुकी नामक सर्प को धारण करते है। वासुकी पिछले जन्म में भगवान शिव की तपस्या की थी। जिससे प्रसन्न होकर शिव जी ने उसे अपने गले मे स्थान दिया। सर्प के स्वभाव के कारण उसे कोई पसन्द नही करता किंतु शिव के लिए सभी प्राणी एक समान है। डमरू  शिव जी को संगीत और नृत्य में खास रुचि है। इसी कारण शिव जी तांडव का नृत्य करते है। भगवान भोलेनाथ का नटराज अवतार इसका उदाहरण है। सृष्टि के आरंभ के समय जब भोलेनाथ ने डमरू बजाया था तो उसी ध्वनि से संस्कृत भाषा का जन्म हुआ था। चन्द्रमा  ज्योतिष शास्त्र में चंद्र को मन का कारक माना गया है। इसी के कारण मनुष्य पाप और पुण्य कार्यो को करता है। भगवान शिव शंकर चंद्र को अपनी जटाओं में धारण करते है इसी के चलते उन्हें शीतलता मिलती है। इसी के कारण उनका अपने मन पर नियंत्रण होता है।

धर्म ग्रन्थ में भी साफ़ नहीं लिखा है शिव भगवान की इन पांच चीज़ों का बारें में





 



भोलेनाथ बड़ी ही सरलता से प्रसन्न हो जाते है। यदि देखा जाए तो अन्य देवी देवताओं से भोलेनाथ का जीवन बिल्कुल भिन्न है। इतना ही नही इनके जन्म के विषय में किसी भी धर्म ग्रन्थ में स्पष्ट रूप से नही लिखा है। आइये जाने भगवान शिव के पांच अनोखे रहस्य के विषय मे।

तीन नेत्र



भोलेनाथ के द्वारा दिये गए निर्देशो से ही ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। भगवान शिव से भूत, भविष्य, वर्तमान कुछ नही छुपा है। वो बातें जिन्हें हम देख और समझ नही पाते वो बात शिव जी से छिप नही सकती।

त्रिशूल



भगवान शिव का त्रिशूल के 3 भाग मानव के अंदर के भौतिक, दैहिक और दैविक पापों को नष्ट करके जीवन अर्ल बनाता है। भगवान शिव त्रिशूल से ही अधर्मी और असुरों का वध करते है।

सर्प



सभी देवी देवता जहाँ गले मे पुष्प की माला धारण करते है वहीं भगवान शिव शंकर गले मे वासुकी नामक सर्प को धारण करते है। वासुकी पिछले जन्म में भगवान शिव की तपस्या की थी। जिससे प्रसन्न होकर शिव जी ने उसे अपने गले मे स्थान दिया। सर्प के स्वभाव के कारण उसे कोई पसन्द नही करता किंतु शिव के लिए सभी प्राणी एक समान है।

डमरू



शिव जी को संगीत और नृत्य में खास रुचि है। इसी कारण शिव जी तांडव का नृत्य करते है। भगवान भोलेनाथ का नटराज अवतार इसका उदाहरण है। सृष्टि के आरंभ के समय जब भोलेनाथ ने डमरू बजाया था तो उसी ध्वनि से संस्कृत भाषा का जन्म हुआ था।

चन्द्रमा



ज्योतिष शास्त्र में चंद्र को मन का कारक माना गया है। इसी के कारण मनुष्य पाप और पुण्य कार्यो को करता है। भगवान शिव शंकर चंद्र को अपनी जटाओं में धारण करते है इसी के चलते उन्हें शीतलता मिलती है। इसी के कारण उनका अपने मन पर नियंत्रण होता है।

मंगलवार, 6 अगस्त 2019

कर्म ही पारस है* आलस्य नहीं करना चाहिए क्योंकि आलस्य मनुष्य का बहुत बड़ा शत्रु होता है

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*आज का प्रेरक प्रसंग*
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*कर्म ही पारस है*

*एक प्रतापी गुरु थे जो अपने सभी शिष्यों से बहुत प्रेम करते थे। अपने शिष्यों के हर गुणों और कमियों के बारे में पता कर उन्हें भविष्य के लिए तैयार करते थे। उनका एक ही मात्र लक्ष्य था कि उनका हर एक शिष्य जीवन के हर पड़ाव पर हिम्मत से आगे बढ़े।उनके सभी शिष्यों में एक शिष्य था जो अत्यंत भोला था। स्वभाव का बड़ा ही कोमल और सरल विचारों वाला था लेकिन वह बहुत ज्यादा आलसी था।*
*आलस्य के कारण ही उसे कुछ भी पाने का मन नहीं था। वो बिना कर्म के मिलने वाले फल में रूचि रखता था।उसका यह अवगुण गुरु को बहुत परेशान कर रहा था।वे दिन रात अपने उसी शिष्य के विषय में सोच रहे थे।एक दिन उन्होंने पारस पत्थर की कहानी अपने सभी शिष्यों को सुनाई।*
*इस पत्थर के बारे में जानने के लिए सबसे अधिक जिज्ञासु वही शिष्य था।यह देख गुरु उसकी मंशा समझ गये। वे समझ गये कि यह आलसी हैं इसलिए उसे इस जादुई पत्थर की लालसा हैं।लेकिन ये मुर्ख यह नहीं जानता कि जो व्यक्ति कर्महीन होता है। उसकी सहायता तो स्वयं भगवान् भी नहीं कर सकते और ये तो बस एक साधारण पत्थर हैं। यह सोचते- सोचते गुरु ने सोचा कि यही सही वक्त हैं इस शिष्य को आलस के अवगुणों से अवगत कराने का।*
*ऐसा सोच गुरु जी ने उस शिष्य को अपनी कुटिया में बुलवाया कुछ क्षण बाद, कुटिया के भीतर शिष्य ने प्रवेश किया और गुरु को सिर झुका कर प्रणाम किया।गुरु ने आशीर्वाद देते हुए कहा – बेटा ! मैंने आज जिस पारस पत्थर की कहानी सुनाई वो पत्थर मेरे पास हैं*
*और तुम मेरे प्रिय शिष्य हो इसलिए मैं वो पत्थर सूर्य उदय से लेकर सूर्यास्त तक के लिए तुम्हे देना चाहता हूँ।तुम उससे जो करना चाहों कर सकते हो। तुम्हे जीतना स्वर्ण चाहिये तुम इस पत्थर से इस दिए गये समय में बना सकते हो।यह सुनकर शिष्य की ख़ुशी का ठिकाना न था।*
*गुरु जी ने उसे प्रातः सूर्योदय होने पर पत्थर देने का कहा। रात भर वह इस पत्थर के बारे में सोचता रहा।दुसरे दिन, शिष्य ने गुरु जी से पत्थर लिया और सोचने लगा कि कितना स्वर्ण मेरे जीवन के लिए काफी होगा ? और इसी चिंतन में उसने आधा दिन निकाल दिया।भोजन कर वो अपने कक्ष में आया। उस वक्त भी वह उसी चिंतन में था कि कितना स्वर्ण जीवन व्यापन के लिए पर्याप्त होगा और यह सोचते-सोचते आदतानुसार भोजन के बाद उसकी आँख लग गई और जब खुली तब दिन ढलने को था और गुरूजी के वापस आने का समय हो चूका था। उसे फिर कुछ समझ नहीं आया।*
*इतने में गुरु जी वापस आ गये और उन्होंने पत्थर वापस ले लिया।शिष्य ने बहुत विनती की लेकिन गुरु जी ने एक ना सुनी।तब गुरु जी ने शिष्य को समझाया पुत्र ! आलस्य व्यक्ति की समझ पर लगा ताला हैं।आलस के कारण तुम इतने महान अवसर का लाभ भी ना उठ सके जो व्यक्ति कर्म से भागता हैं उसकी किस्मत कभी उसका साथ नहीं देती।तुम एक अच्छे शिष्य हो परन्तु तुममे बहुत आलस्य हैं।*
*जिस दिन तुम इस आलस्य के चौले को निकाल फेकोगे। उस दिन तुम्हारे पास कई पारस के पत्थर होंगे।शिष्य को गुरु की बात समझ आ गई और उसने खुद को पूरी तरह बदल दिया। उसे कभी किसी पारस की लालसा नही*

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