🦚 ।। *मयूर पंख* ।।🦚
वनवास के दौरान माता सीताजी को पानी की प्यास लगी ,तभी श्री रामजीने चारों ओर देखा तो उनको दूर-दूर तक जंगल ही जंगल दिख रहा था। कुदरत से प्रार्थना करी। हे जंगलजी आसपास जहां कही पानी हो वहां जाने का मार्ग कृपया सुझाईये ।तभी वहां एक मयुरने आ कर श्री रामजी से कहा कि आगे थोड़ी दूर पर एक जलाशय है ।चलिए मैं आपका मार्ग पथ प्रदर्शक बनता हूं । किंतु मार्ग में हमारी भूल चूक होने की संभावना है ।श्री रामजी ने पूछा वह क्यों ? तब मयूर ने उत्तर दिया कि मैं उड़ता हुआ जाऊंगा और आप चलते हुए आएंगे ।इसलिए मार्गमें मैं अपना एक एक पंख बिखेरता हुआ जाऊंगा ।उस के सहारे आप जलाशय तक पहुंची हि जाओगे ।
यह बात को हम सभी जानते हैं कि मयूर के पंख, एक विशेष समय एवं एक विशेष ऋतु में ही बिखरते हैं ।अगर वह अपनी इच्छा विरुद्ध पंखों को बिखेरेगा तो उसकी मृत्यु हो जाती है । वही हुआ ।अंत में जब मयुर अपनी अंतिम सांस ले रहा होता है... उसने कहा कि वह कितना भाग्यशाली है की जो जगत की प्यास बुझाते हैं ऐसे प्रभु की प्यास बुझाने का उसे सौभाग्य प्राप्त हुआ । मेरा जीवन धन्य हो गया।अब मेरी कोई भी इच्छा शेष नहीं रही । तभी भगवान श्री रामने मयुर से कहा की, मेरे लिए तुमने जो मयूर पंख बिखेरकर, मुझ पर जो ऋणानुबंध चढ़ाया है ,मैं उस ऋण को अगले जन्म में जरूर चुकाऊंगा। मेरे सर पर आपको चढ़ाकर ।
तत्पश्चात अगले जन्म में श्री कृष्ण अवतार में उन्होंने अपने माथे पर मयूर पंखको धारण कर वचन अनुसार उस मयुरका ऋण उतारा था।
तात्पर्य यही है कि अगर भगवान को ऋण उतारने के लिए पुनः जन्म लेना पड़ता है, तो हम तो मानव है।न जाने हम तो कितने ही ऋणानुबंधसे बंधे हैं । उसे उतारने के लिए हमें तो कई जन्मभी कम पड़ जाएंगे।
अर्थात अपना जो भी भला हम कर सकते हैं इसी जन्म में हमे करना है। ऋणानुबंध से मुक्ति पाने हेतु आत्मसाक्षात्कार द्वारा ध्यान मार्ग अपनाकर, श्री योगेश्वर के मध्यमार्ग द्वारा श्री सदाशिव में विलीन हो जायें एवं मोक्ष पाकर सभी ऋणनुबंध से मुक्ति पाएं।
...।। अस्तु ।।
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