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बुधवार, 27 फ़रवरी 2019

Good morning. Hindi gyan Ki baat. #Bhanekagaon

Author :-Pawan Panchariya Bhanekagaon

*"इच्छायें-मनुष्य"*
*को जीने नहीं देती*
           *और*
*"मनुष्य-इच्छाओं"*
*को मरने नहीं देता*

¸.•*""*•.¸
*Զเधे Զเधे ......*
___☔__
*श्री कृष्ण:शरणम मम*
___________________
*!!✺!! जय श्री कृष्ण !!✺!!*
   *!!!! शुभ प्रभात   !!!!*

मंगलवार, 1 जनवरी 2019

Radhe Radhe

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   *अगर लोग सिर्फ जरूरत पर ही*     
           *आपको याद करते हैं,*
       *तो उन्हें गलत मत समझिये,*
                  *क्योंकि*
      *आप उनकी जिन्दगी की वो*   
          *रोशनी की किरण हैं*
              *जो उन्हें सिर्फ,*
   *अन्धेरों में ही दिखाई देती है.*
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������शुभ-प्रभात्����




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शुक्रवार, 28 दिसंबर 2018

Friends is important. Dost is important. Dost ki kahani Hindi me.

[ दोस्त ] एक बहुत बड़ा सरोवर था। उसके तट पर मोर रहता था, और वहीं पास एक मोरनी भी रहती थी। एक दिन मोर ने मोरनी से प्रस्ताव रखा कि- “हम तुम विवाह कर लें, तो कैसा अच्छा रहे?” मोरनी ने पूछा- “तुम्हारे मित्र कितने है? ” मोर ने कहा उसका कोई मित्र नहीं है। तो मोरनी ने विवाह से इनकार कर दिया। मोर सोचने लगा सुखपूर्वक रहने के लिए मित्र बनाना भी आवश्यक है। उसने एक सिंह से.., एक कछुए से.., और सिंह के लिए शिकार का पता लगाने वाली टिटहरी से.., दोस्ती कर लीं। जब उसने यह समाचार मोरनी को सुनाया, तो वह तुरंत विवाह के लिए तैयार हो गई। पेड़ पर घोंसला बनाया और उसमें अंडे दिए, और भी कितने ही पक्षी उस पेड़ पर रहते थे। एक दिन शिकारी आए। दिन भर कहीं शिकार न मिला तो वे उसी पेड़ की छाया में ठहर गए और सोचने लगे, पेड़ पर चढ़कर अंडे- बच्चों से भूख बुझाई जाए। मोर दंपत्ति को भारी चिंता हुई, मोर मित्रों के पास सहायता के लिए दौड़ा। बस फिर क्या था.., टिटहरी ने जोर – जोर से चिल्लाना शुरू किया। सिंह समझ गया, कोई शिकार है। वह उसी पेड़ के नीचे चला.., जहाँ शिकारी बैठे थे। इतने में कछुआ भी पानी से निकलकर बाहर आ गया। सिंह से डरकर भागते हुए शिकारियों ने कछुए को ले चलने की बात सोची। जैसे ही हाथ बढ़ाया कछुआ पानी में खिसक गया। शिकारियों के पैर दलदल में फँस गए। इतने में सिंह आ पहुँचा और उन्हें ठिकाने लगा दिया। मोरनी ने कहा- “मैंने विवाह से पूर्व मित्रों की संख्या पूछी थी, सो बात काम की निकली न, यदि मित्र न होते, तो आज हम सबकी खैर न थी।” मित्रता सभी रिश्तों में अनोखा और आदर्श रिश्ता होता है। और मित्र किसी भी व्यक्ति की अनमोल पूँजी होते है। अगर गिलास दुध से भरा हुआ है तो आप उसमे और दुध नहीं डाल सकते। लेकिन आप उसमे शक्कर डाले। शक्कर अपनी जगह बना लेती है और अपना होने का अहसास दिलाती है। जीवन में किसी के दोस्त बनो तो शक्कर की तरह बनों!!

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[ क्रोध ] एक 12-13 साल के लड़के को बहुत क्रोध आता था। उसके पिता ने उसे ढेर सारी कीलें दीं और कहा कि जब भी उसे क्रोध आए वो घर के सामने लगे पेड़ में वह कीलें ठोंक दे। पहले दिन लड़के ने पेड़ में 30 कीलें ठोंकी। अगले कुछ हफ्तों में उसे अपने क्रोध पर धीरे-धीरे नियंत्रण करना आ गया। अब वह पेड़ में प्रतिदिन इक्का-दुक्का कीलें ही ठोंकता था। उसे यह समझ में आ गया था कि पेड़ में कीलें ठोंकने के बजाय क्रोध पर नियंत्रण करना आसान था। एक दिन ऐसा भी आया जब उसने पेड़ में एक भी कील नहीं ठोंकी। जब उसने अपने पिता को यह बताया तो पिता ने उससे कहा कि वह सारी कीलों को पेड़ से निकाल दे। लड़के ने बड़ी मेहनत करके जैसे-तैसे पेड़ से सारी कीलें खींचकर निकाल दीं। जब उसने अपने पिता को काम पूरा हो जाने के बारे में बताया तो पिता बेटे का हाथ थामकर उसे पेड़ के पास लेकर गया। पिता ने पेड़ को देखते हुए बेटे से कहा – “तुमने बहुत अच्छा काम किया, मेरे बेटे, लेकिन पेड़ के तने पर बने सैकडों कीलों के इन निशानों को देखो। अब यह पेड़ इतना खूबसूरत नहीं रहा। हर बार जब तुम क्रोध किया करते थे तब इसी तरह के निशान दूसरों के मन पर बन जाते थे। अगर तुम किसी के पेट में छुरा घोंपकर बाद में हजारों बार माफी मांग भी लो तब भी घाव का निशान वहां हमेशा बना रहेगा। अपने मन-वचन-कर्म से कभी भी ऐसा कृत्य न करो जिसके लिए तुम्हें सदैव पछताना पड़े…!!

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[ परवरिश में खोट ] यह कहानी एक ऐसे बच्चे की है जो बचपन में बहुत होनहार था! लेकिन जब वोह स्कूल में गलत बच्चो की संगत में पड़ जाता है! और वोह स्कूल के बच्चो की कापी पेन्सिल जैसी छोटी – छोटी चोरिया शुरू कर देता है! लेकिन उसकी माँ को यह बात पता चल जाती लेकिन वह उसे रोकने की वजाय उसे और प्रोत्सहन देती है ! और उसे अपने लड़के के इस काम से ख़ुशी होती है वह इसलिए की उसे पढाई करने का सामान खरीदना नहीं पड़ता था! लेकिन जैसे – जैसे वह बड़ा होता गया ! और काम भी उसके बड़े होते गए, धीरे – धीरे वह बड़ी – बड़ी चोरिया, मर्डर जैसे काम करना शुरु कर दिया, उसने एक दिन ऐसा आया की बड़ी मशहुर हो गया और पुलिस की मोस्ट वांटेड लिस्ट में सुमार हो गया ! उसकी माँ उसके इस काम से बड़ी खुश रहती थी ! क्योकि उसकी माँ को सानो – सौकत की जिन्दगी जीने को मिल रही थी ! एक दिन ऐसा आया की बड़ी जेल की सलाखों के पीछे पहुच गया और उसे जज के सामने पेस किया गया ! उसे जज ने एक कठोर सजा सुनाई, जो की फ़ासी थी, उसे अब भूल का अहेसास हुआ! लेकिन अब क्या हो सकता था ! उसकी आखिरी इच्छा पूछी गई ! उसने आखिरी इच्छा में अपनी माँ से मिलने की ख्वाहिस जाहिर की, उसकी माँ को बुलाया गया, उसकी माँ उसे जेल में देख बहुत दुखी हुई, तो उसके लड़के ने जवाब दिया, अगर मुछे बचपन में, जब मै, पहली बार स्कूल में चोरी की थी, ! तब अगर मुछे उसी दिन एक तमाचा खीच कर मर दिया होता तो मै आज यहाँ नहीं हो ! और तुछे यह दिन देखना नहीं पड़ता, उसकी माँ को बहुत पछतावा हुआ लेकिन…… यही कहावत हुई की “अब पछताए होत का, जब चिड़िया चुग गई खेत!!” नोट - हमारी गलतियो से हमें अवगत कराए अगर आपको हमारे लेख पसंद आ रहे हो तो हमें ज्वाइन करे अपनी राय देना न भूले धन्यबाद

क्या आपको पता है? क्रोध का पूरा खांनदान है! Hindi story

[ क्या आपको पता है? क्रोध का पूरा खांनदान है! ]

क्रोध की एक लाडली बहन है….. ॥ जिद ॥ क्रोध की पत्नी है….. ॥ हिंसा ॥ क्रोध का बडा भाई है ॥ अंहकार ॥ क्रोध का बाप जिससे वह डरता है….. ॥ भय ॥ क्रोध की बेटिया हैं…… ॥ निंदा और चुगली ॥ क्रोध का बेटा है…… ॥ बैर ॥ इस खानदान की नकचडी बहू है….. ॥ ईर्ष्या॥ क्रोध की पोती है…… ॥ घृणा ॥ क्रोध की मां है …… ॥ उपेक्षा ॥ और क्रोध का दादा है…… ।। द्वेष ।। तो इस खानदान से हमेशा दूर रहें और हमेशा खुश रहो। इस मेसेज को आगे भेजकर सबको इस खानदान के बारे जानकारी दे। धन्यवाद!!

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[ सब्र का फल ] एक गरीब युवक, अपनी गरीबी से परेशान होकर, अपना जीवन समाप्त करने नदी पर गया, वहां एक साधू ने उसे ऐसा करने से रोक दिया। साधू ने, युवक की परेशानी को सुन कर कहा, कि मेरे पास एक विद्या है, जिससे ऐसा जादुई घड़ा बन जायेगा जो भी इस घड़े से मांगोगे, ये जादुई घड़ा पूरी कर देगा, पर जिस दिन ये घड़ा फूट गया, उसी समय, जो कुछ भी इस घड़े ने दिया है, वह सब गायब हो जायेगा। अगर तुम मेरी 2 साल तक सेवा करो, तो ये घड़ा, मैं तुम्हे दे सकता हूँ और, अगर 5 साल तक तुम मेरी सेवा करो, तो मैं, ये घड़ा बनाने की विद्या तुम्हे सिखा दूंगा। बोलो तुम क्या चाहते हो? युवक ने कहा, महाराज मैं तो 2 साल ही आप की सेवा करना चाहूँगा, मुझे तो जल्द से जल्द, बस ये घड़ा ही चाहिए, मैं इसे बहुत संभाल कर रखूँगा, कभी फूटने ही नहीं दूंगा। इस तरह 2 साल सेवा करने के बाद, युवक ने वो जादुई घड़ा प्राप्त कर लिया, और अपने घर पहुँच गया। उसने घड़े से अपनी हर इच्छा पूरी करवानी शुरू कर दी, महल बनवाया, नौकर चाकर मांगे, सभी को अपनी शान शौकत दिखाने लगा, सभी को बुला-बुला कर दावतें देने लगा और बहुत ही विलासिता का जीवन जीने लगा, उसने शराब भी पीनी शुरू कर दी और एक दिन नशें में, घड़ा सर पर रख नाचने लगा और ठोकर लगने से घड़ा गिर गया और फूट गया. घड़ा फूटते ही सभी कुछ गायब हो गया, अब युवक सोचने लगा कि काश मैंने जल्दबाजी न की होती और घड़ा बनाने की विद्या सीख ली होती, तो आज मैं, फिर से कंगाल न होता। “ईश्वर हमें हमेशा 2 रास्ते पर रखता है एक आसान – जल्दी वाला और दूसरा थोडा लम्बे समय वाला, पर गहरे ज्ञान वाला, ये हमें चुनना होता है की हम किस रास्ते पर चलें” ” कोई भी काम जल्दी में करना अच्छा नहीं होता, बल्कि उसके विषय में गहरा ज्ञान आपको अनुभवी बनाता है “

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[ मेहनत का फल ] एक फकीर 50 साल से एक ही जगह बैठकर रोज की 5 नमाज पढता था. एक दिन आकाशवाणी हुई और खुदा की आवाज आई “हे फकीर.! तु 50 साल से नमाज पढ रहा है, लेकिन तेरी एक भी नमाज स्वीकार नही हुई” फकीर के साथ बैठने वाले दुसरे बंदो को भी दु:ख हुआ कि, यह बाबा 50 साल से नमाज पढ रहे है और इनकी एक भी नमाज कबुल नही हुई. खुदा यह तेरा कैसा न्याय.? लेकिन फकीर दु:खी होने के बजाय खुशी से नाचने लगा. दुसरे लोगो ने फकीर को देखकर आश्चर्य हुआ. एक बंदा फकीर से बोला : बाबा, आपको तो दु:ख होना चाहिए कि आपकी 50 साल कि बंदगी बेकार गई.! फकीर ने जवाब दिया : ” मेरी 50 साल की बंदगी भले ही कबुल ना हुई तो क्या हुआ…!!! लेकिन खुदा को तो पता है ना कि मैँ 50 साल से बंदगी कर रहा हु” इसिलिए दोस्तो जब आप मेहनत करते हो और फल ना मिले तो निराश मत होना, क्युकिँ भगवान को तो पता है ही कि आप मेहनत कर रहे है, इसिलिए फल तो जरुर देगा ….!!

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[ एक कार ] एक मेहनती और ईमानदार नौजवान बहुत पैसे कमाना चाहता था क्योंकि वह गरीब था और बदहाली में जी रहा था। उसका सपना था कि वह मेहनत करके खूब पैसे कमाये और एक दिन अपने पैसे से एक कार खरीदे। जब भी वह कोई कार देखता तो उसे अपनी कार खरीदने का मन करता। कुछ साल बाद उसकी अच्छी नौकरी लग गयी। उसकी शादी भी हो गयी और कुछ ही वर्षों में वह एक बेटे का पिता भी बन गया। सब कुछ ठीक चल रहा था मगर फिर भी उसे एक दुख सताता था कि उसके पास उसकी अपनी कार नहीं थी। धीरे – धीरे उसने पैसे जोड़ कर एक कार खरीद ली। कार खरीदने का उसका सपना पूरा हो चुका था और इससे वह बहुत खुश था। वह कार की बहुत अच्छी तरह देखभाल करता था और उससे शान से घूमता था। एक दिन रविवार को वह कार को रगड़ – रगड़ कर धो रहा था। यहां तक कि गाड़ी के टायरों को भी चमका रहा था। उसका 5 वर्षीय बेटा भी उसके साथ था। बेटा भी पिता के आगे पीछे घूम – घूम कर कार को साफ होते देख रहा था। कार धोते धोते अचानक उस आदमी ने देखा कि उसका बेटा कार के बोनट पर किसी चीज़ से खुरच – खुरच कर कुछ लिख रहा है। यह देखते ही उसे बहुत गुस्सा आया। वह अपने बेटे को पीटने लगा। उसने उसे इतनी जो़र से पीटा कि बेटे के हाथ की एक उंगली ही टूट गयी। दरअसल वह आदमी अपनी कार को बहुत चाहता था और वह बेटे की इस शरारत को बर्दाश्त नहीं कर सका । बाद में जब उसका गुस्सा कुछ कम हुआ तो उसने सोंचा कि जा कर देखूं कि कार में कितनी खरोंच लगी है। कार के पास जा कर देखने पर उसके होश उड़ गये। उसे खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था। वह फूट – फूट कर रोने लगा। कार पर उसके बेटे ने खुरच कर लिखा था Papa, I love you. यह कहानी हमें यह सिखाती है कि किसी के बारे में कोई गलत राय रखने से पहले या गलत फैसला लेने से पहले हमें ये ज़रूर सोंचना चाहिये कि उस व्यक्ति ने वह काम किस नियत से किया है।

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[दर्जी की सीख] एक दिन स्कूल में छुट्टी की घोषणा होने के कारण, एक दर्जी का बेटा, अपने पापा की दुकान पर चला गया । वहाँ जाकर वह बड़े ध्यान से अपने पापा को काम करते हुए देखने लगा । उसने देखा कि उसके पापा कैंची से कपड़े को काटते हैं और कैंची को पैर के पास टांग से दबा कर रख देते हैं । फिर सुई से उसको सीते हैं और सीने के बाद सु ई को अपनी टोपी पर लगा लेते हैं । जब उसने इसी क्रिया को चार-पाँच बार देखा तो उससे रहा नहीं गया, तो उसने अपने पापा से कहा कि वह एक बात उनसे पूछना चाहता है ? पापा ने कहा- बेटा बोलो क्या पूछना चाहते हो ? बेटा बोला- पापा मैं बड़ी देर से आपको देख रहा हूं , आप जब भी कपड़ा काटते हैं, उसके बाद कैंची को पैर के नीचे दबा देते हैं, और सुई से कपड़ा सीने के बाद, उसे टोपी पर लगा लेते हैं, ऐसा क्यों ? इसका जो उत्तर पापा ने दिया- उन दो पंक्तियाँ में मानों उसने ज़िन्दगी का सार समझा दिया । उत्तर था- ” बेटा, कैंची काटने का काम करती है, और सुई जोड़ने का काम करती है, और काटने वाले की जगह हमेशा नीची होती है परन्तु जोड़ने वाले की जगह हमेशा ऊपर होती है । यही कारण है कि मैं सुई को टोपी पर लगाता हूं और कैंची को पैर के नीचे रखता हूं ।”

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[ एक गलती ] एक बार कुछ विद्यार्थी रसायन विज्ञानं प्रयोगशाला में कुछ प्रयोग कर रहे थे. सभी विद्यार्थी अपने अपने प्रयोगों में व्यस्त थे कि अचानक एक लड़के की परखनली से तेज बुलबुला उठा और उसकी छिट्कियाँ सामने प्रयोग कर रही लड़की की आँखों में चला गया. पूरी प्रयोगशाला में हाहाकार मच गया, सभी खूब परेशांन हुए, आनन फानन में उस लड़की को अस्पताल पहुँचाया गया, वहाँ डाक्टरों ने बताया कि वो अपनी आँखें खो चुकी है. ये सुन कर उस लड़की के घर वालों ने उस लड़के को कोसना शुरू कर दिया और स्कूल वालों ने उस लड़के को स्कूल से निकाल दिया. अब वो अंधी लड़की अपनी नीरस ज़िन्दगी बिता रही थी, जो शायद किसी की लापरवाही की वजह से वीरान सी हो गयी थी, अब उस लड़की की ज़िन्दगी में कोई भी रंग कोई मायने नहीं रखता था. घर वाले भी वक़्त बेवक्त उस लड़के को कोसते रहते थे जिसने उनकी लड़की की ज़िन्दगी खराब कर दी थी. आज कल के ज़माने में तो किसी के सामने हूर परी भी बैठा दो तो भी लड़के वालों को उससे भी ज्यादा खूबसूरत चाहिए होती है. फिर उस बिचारी की वीरान ज़िन्दगी में रंग भरने की बात सोच पाना भी असंभव सा था. खैर वक़्त बीतता गया और उस लड़की को उस वीराने की आदत हो गयी. क्योंकि अब उसकी ज़िन्दगी में कही से भी उजाला आने की कोई गुंजाइश नहीं थी. अचानक एक दिन एक बड़े इंजीनियर का रिश्ता उस अंधी लड़की के घर आया. यही नहीं लड़का खुद उसके घरवालों से उसका हाथ मांगने अपने माँ बाप के साथ आया था. घर वाले मन ही मन बहुत खुश हो रहे थे कि बैठे बिठाये उन्हें अपनी अंधी लड़की के लिए लड़का मिल गया लेकिन लड़की इस बात से काफी दुखी थी. शायद इसलिए कि वो किसी की ज़िन्दगी खराब नहीं करना चाहती थी. इसलिए उसने लड़के को अन्दर बुलाया और बोली कि मैं अंधी हूँ आपके घर का कोई काम मैं नहीं कर पाउंगी, आपको मुझसे कोई सुख नहीं मिल पायेगा, आप एक इंजीनियर हैं इसलिये आपको तो एक से बढ़कर एक लड़कियां मिल जायेंगी. आप प्लीज़ अपनी ज़िन्दगी खराब मत कीजिये. इस पर वो लड़का आगे बढ़ा और घुटनों के बल बैठकर लड़की का हाथ पकड़कर बोला : प्लीज़ तुम इस शादी के लिए हाँ कहके मुझे मेरा प्रायश्चित कर लेने दो, मैं वही हूँ जिसने तुम्हारी ज़िन्दगी वीरान की है और आज मैं प्रायश्चित करना चाहता हूँ. प्लीज़ मना मत करना. ये सुन कर वो लड़की रोने लगती है, ये सोच कर नहीं कि उसकी ज़िन्दगी खराब करने वाला उससे शादी करना चाहता है. बल्कि ये सोच कर कि इस दुनिया में ऐसे लोग भी है जो अपनी गलती को स्वीकारना जानते हैं ।।

Bhagwan bhakto ke sath rahe h. Hindi story in Hindi

[विश्वास रखो !] एक अमीर आदमी था। उसने समुद्र मेँ अकेले घूमने के लिए एक नाव बनवाई। छुट्टी के दिन वह नाव लेकर समुद्र की सैर करने निकला। आधे समुद्र तक पहुंचा ही था कि अचानक एक जोरदार तूफान आया। उसकी नाव पुरी तरह से तहस-नहस हो गई लेकिन वह लाईफ जैकेट की मदद से समुद्र मेँ कुद गया। जब तूफान शांत हुआ तब वह तैरता तैरता एक टापू पर पहुंचा लेकिन वहाँ भी कोई नही था। टापू के चारोँ ओर समुद्र के अलावा कुछ भी नजर नही आ रहा था। उस आदमी ने सोचा कि जब मैंने पूरी जिदंगी मेँ किसी का कभी भी बुरा नही किया तो मेरे साथ ऐसा क्यूँ हुआ..??? उस आदमी को लगा कि भगवान ने मौत से बचाया तो आगे का रास्ता भी भगवान ही बताएगा। धीरे धीरे वह वहाँ पर उगे झाड-पत्ते खाकर दिन बिताने लगा। अब धीरे-धीरे उसकी श्रध्दा टूटने लगी,भगवान पर से उसका विश्वास उठ गया। उसको लगा कि इस दुनिया मेँ भगवान है ही नही। फिर उसने सोचा कि अब पूरी जिंदगी यही इस टापू पर ही बितानी है तो क्यूँ ना एक झोपडी बना लूँ ……?? फिर उसने झाड की डालियो और पत्तो से एक छोटी सी झोपडी बनाई। उसने मन ही मन कहा कि आज से झोपडी मेँ सोने को मिलेगा आज से बाहर नही सोना पडेगा। रात हुई ही थी कि अचानक मौसम बदला बिजलियाँ जोर जोर से कड़कने लगी.! तभी अचानक एक बिजली उस झोपडी पर आ गिरी और झोपडी धधकते हुए जलने लगी। यह देखकर वह आदमी टूट गया आसमान की तरफ देखकर बोला तू भगवान नही, राक्षस है। तुझमे दया जैसा कुछ है ही नही तू बहुत क्रूर है! वह व्यक्ति हताश होकर सर पर हाथ रखकर रो रहा था। कि अचानक एक नाव टापू के पास आई। नाव से उतरकर दो आदमी बाहर आये और बोले कि हम तुम्हेँ बचाने आये हैं। दूर से इस वीरान टापू मे जलता हुआ झोपडा देखा तो लगा कि कोई उस टापू पर मुसीबत मेँ है। अगर तुम अपनी झोपडी नही जलाते तो हमे पता नही चलता कि टापू पर कोई है। उस आदमी की आँखो से आँसू गिरने लगे। उसने ईश्वर से माफी माँगी और बोला कि मुझे क्या पता कि आपने मुझे बचाने के लिए मेरी झोपडी जलाई थी। ============================================= Moral – दिन चाहे सुख के हों या दुख के, भगवान अपने भक्तों के साथ हमेशा रहते हैं।

गुरुवार, 20 दिसंबर 2018

स्वयं को मूल्यहीन न समझें

स्वयं को मूल्यहीन न समझें

व्यक्ति कई मौकों पर खुद को मूल्यहीन समझने लगता है। ऐसे में किसी भी तुलना से दूर रहते हुए खुद पर भरोसा रखकर आगे बढ़ना ही आपका मंत्र होना चाहिए।

क्या वाकई मैं कुछ अच्छा काम नहीं कर रहा हूं? क्या मैं अपनी पूरी क्षमता से काम कर पा रहा हूं? क्या मैं इतना अच्छा हूं कि लोग मुझसे प्यार करें? ऐसे खयाल बहुत से लोगों के मन में उमड़ते हैं। अपने प्रियजनों और परिजनों की नजर में और अपने कामकाजी जीवन में अपने महत्व को लेकर अक्सर लोग कुछ ज्यादा ही चिंतित होते हैं। ऐसी चिंता बहुधा उन्हें अपनी क्षमता से कमतर होने का एहसास कराती है।

ऐसा समय सभी के जीवन में कभी न कभी जरूर आता है जबकि व्यक्ति को अपनी क्षमताओं पर संदेह होने लगता है, अपनी योग्यता पर वह खुद ही प्रश्नचिह्न लगाने लगता है। जिंदगी के ऐसे लम्हों में जब आप खुद को कमतर आंकें तो अपने आत्मविश्वास को संभालने की बहुत ज्यादा जरूरत है।

इसाक असीमोव ने इसी तरफ इशारा करते हुए कहा है-'सभी बातों में सबसे महत्वपूर्ण है कि कभी यह न सोचें कि आपका कोई महत्व नहीं है। किसी भी व्यक्ति को ऐसा नहीं सोचना चाहिए। मेरा मानना है कि जीवन में मिलने वाले लोग खुद को पहचानने में आपकी मदद ही करेंगे।" असीमोव का कहना है कि जिन लोगों को देखकर हम खुद को कमतर समझते हैं वे तो खुद को समझने में हमारी मदद भर करते हैं। अपने पर संदेह से उबरने में कुछ कदम आपकी मदद कर सकते हैं।

हर व्यक्ति का अलग स्तर

अगर आपको लगता है कि आपको अपने साथियों के मुकाबले बहुत ही कम चीजें आती हैं। उनके स्तर तक पहुंचने के लिए आपको बहुत लंबा समय लगेगा तो इस तरह दूसरों के साथ तुलना करने के बजाय आपको समझना चाहिए कि उनके और आपके स्तर में फर्क है, और आप दोनों की प्राथमिकताएं भी अलग-अलग हैं।

समान परिस्थितियों में रहने वाले दो लोग भी एक स्तर पर नहीं होते हैं इसलिए खुद को दूसरों से कमतर समझने के भाव से उबरना चाहिए। इसके साथ यह भी है कि सिर्फ आप अकेले नहीं हैं जो दूसरों से इस तरह की तुलना करके दबाव में आते हैं बल्कि ऐसा सभी लोगों के साथ होता है। मुश्किल उन्हीं लोगों के साथ पेश आती है जो खुद को मूल्यहीन मान बैठते हैं। इसलिए जरूरी यही है कि खुद को मूल्यहीन न समझें।

हर व्यक्ति में कोई न कोई खूबी

मान लीजिए कि आप मार्केटिंग में बहुत अच्छे नहीं हैं और इसी कारण आप खुद को साबित करने का दबाव महसूस करते हों लेकिन हो सकता है कि आप दूसरों के साथ तालमेल में माहिर हों। अक्सर हम अपने भीतर उन्हीं गुणों को तलाशते हैं जो हमें दूसरों में दिखाई देते हैं, उन गुणों की तलाश नहीं करते जो हमारे भीतर हैं।

हम दूसरों के गुणों को तो देख पाते हैं लेकिन कई बार अपने गुणों की तरफ ही नजर नहीं जाती है। ऐसे में अपनी क्षमताओं और योग्यताओं को पहचानने की जरूरत है। इसे यूं समझिए कि आप अपने भाई, बहन, पिता, टीचर, बॉस की तरह नहीं होते हैं। आपकी परवरिश और आपका स्वभाव दूसरों से अलग ही होगा। हर व्यक्ति दूसरे से अलग होता है। ऐसे में अपने को कमतर आंकने का कोई अर्थ नहीं है।

भविष्य नहीं वर्तमान में रहें

ऐसे बहुत से लोग हैं जो सोचते हैं कि जब उनकी नौकरी अच्छी हो जाएगी तो वे ज्यादा बेहतर स्थिति में होंगे। या फिर जब उनका अपना घर होगा तब उनके लिए कोई आकांक्षा बाकी नहीं रह जाएगी। जब वे पूरी तरह स्वस्थ होंगे तभी वे खुश रहेंगे। लेकिन इस तरह की सोच के साथ लोग अपने 'आज" की पूरी तरह उपेक्षा करते हैं और उस भविष्य में जीते हैं जो संभावित है।

ऐसे लोग खुशियों के पीछे दौड़ते रहते हैं लेकिन हमेशा उन्हें खुशियां अपने से आगे ही नजर आती है और उन्हें लगता है कि उनका आज मूल्यहीन है। जब वे आज के महत्व को समझेंगे तो उन्हें जीवन मूल्यवान नजर आएगा।

खुद से प्यार करें

जब भी जीवन में दु:ख हो तो आपको प्यार की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। अगर आप खुद के प्रति ही अच्छा नहीं महसूस करेंगे तो चीजें ठीक नहीं होगी। कठिन समय में इंसान को अपने प्रति अधिक उदार होने की जरूरत होती है। हम देखते हैं कि जब भी बच्चे को चोट पहुंचती है या वे दु:खी होते हैं तो माता-पिता उन्हें दुलारते हैं और कहते हैं कि सबकुछ ठीक होगा। यह आश्वासन उनकी जिंदगी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

हमें अपने प्रति भी इस तरह के प्रेम के प्रदर्शन की जरूरत है। अपने प्रति अच्छा सोचकर आप सही दिशा में आगे बढ़ सकेंगे। अपने गुणों के प्रति विश्वास रखना आपको भीतर से भी मजबूत बनाएगा।

आकलन का नजरिया अपना हो

हम खुद को किस तरह देखें और खुद का मूल्यांकन किस तरह करें इसका विचार हमें अपने आसपास के लोगों से मिलता है लेकिन पूरी तरह उनके विचारों के अनुरूप चलने से आप कभी पूरी तरह अपने मन का काम नहीं कर पाएंगे।

हमेशा उनके विचारों के अनुरूप बने रहने का दबाव आप पर बना रहेगा और आप हमेशा खुद को कमतर पाएंगे, इसलिए किसी की भी नकारात्मक प्रतिक्रिया या नकारात्मक विचार के आधार पर खुद के आकलन से बचें। इस तरह आप अपनी ऊर्जा को भी बचा पाएंगे और सही दिशा में आगे बढ़ पाएंगे।

भविष्य आपके हाथ में है

आप अपने विचारों के स्वामी हैं और अपनी गतिविधियों को नियंत्रित भी कर सकते हैं। जब एक बार आप जान लेते हैं कि हर तरह की स्थिति से निकला जा सकता है तो कुछ भी मुश्किल नहीं है। इसलिए आज अगर आप कठिन परिस्थितियों से गुजर रहे हैं तो कल उसमें बदलाव भी कर सकते हैं।

हमेशा याद रखें कि अपने भविष्य को बदलना आपके हाथ में है और अगर आप आज कडी मेहनत करते हैं तो भविष्य में अच्छे परिणाम हासिल कर सकते हैं। मुश्किलों से जूझते हुए जब आप चीजों को बेहतर बनाएंगे तो इससे आपका आत्मसम्मान भी बढ़ना तय है।

जो आप कर सकते हैं दूसरे नहीं

कुछ काम ऐसे भी होते हैं जो आप दूसरों से ज्यादा बेहतर तरीके से कर सकते हैं और इस लिहाज में आप उनसे बहुत ज्यादा आगे हैं। यह खुद को दिलासा देने के लिए नहीं है बल्कि इसका महत्व इस रूप में है कि इस तरह की सोच आपको प्रेरित और उत्साहित बनाए रखती है।

जीवन एकपक्षीय नहीं है बल्कि उसमें कई क्षेत्र हैं और हर क्षेत्र में अलग तरह की योग्यता की जरूरत होती है। याद रखें कि आपके क्षेत्र के मुताबिक आपकी काबिलियत के भी अपने मायने हैं।

जिंदगी कभी निराश होना नहीं सिखाती

जिंदगी कभी निराश होना नहीं सिखाती

निराशा के क्षणों को कभी भी जीवन पर हावी न होने दें। बल्कि जीवन के हताशा भरे क्षणों से कुछ सीखने का प्रयास करें। इन लम्हों से उबरकर आगे बढ़ना और खुद को बेहतर बनाने की कोशिश ही हमारा लक्ष्य होना चाहिए।

चाहे कामकाजी जीवन हो, व्यक्तिगत संबंध या फिर स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियां, इन सभी कारणों से हमारे जीवन में निराशा के क्षण आते हैं। कुछ ऐसे क्षण जब हम अपनी शक्ति और सामर्थ्य को कम महसूस करने लगते हैं। खुद को असमर्थ और असहाय पाते हैं।

लगने लगता है कि हम जीवन को आगे ले जाने में खुद को सामर्थ्यवान नहीं पा रहे हैं। निराशा के ऐसे क्षण हमें अवसाद और दुख भी देते हैं। लेकिन निराशा को जीवन पर हावी होने दिया जाए तो जीवन की स्वाभाविक गति प्रभावित होने लगती है इसलिए उन पलों से बाहर आ जाने का अर्थ ही जीवन है। कई बार पूर्व में दुर्घटनाएं हमारे मन को अपने कब्जे में कर रखती हैं और हम खुद को उनसे मुक्त कर पाने में कठिनाई अनुभव करते हैं।

आगे बढ़ने की राह में वे सबसे बड़ी बाधा हैं। हार, असफलता और तकलीफों से उपजी निराशा को पीछे छोड़कर ही जीवन को अच्छे से जिया जा सकता है। अपनी निराशाओं से उबरने के लिए कुछ छोटे प्रयास कारगर सिद्ध हो सकते हैं।

अपेक्षाओं को कम रखें

इस बात का स्मरण रहे कि हमेशा ही जीवन में जीत नहीं मिलती है। हर उम्मीदवार को नौकरी नहीं मिल जाती है, हर काम पक्ष में ही नहीं हो पाता है। जीवन तो उतार चढ़ाव का नाम है। यहां हर तरह की स्थिति बनती है और आनंद भी इसी में है। इसलिए हर स्थिति में सहज रहना जरूरी है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि आप अपने लिए ऊंचे लक्ष्य तय ही न करें। अपने लक्ष्य ऊंचे रखें लेकिन उन लक्ष्यों के पूरा न होने पर भी जीवन को रुकने न दें।

किंग सोलोमन ने एक जगह लिखा है, जब मैं उन चीजों को देखता हूं जिन्हें पाने के लिए मैंने कडी मेहनत की तो वे सारी चीजें बहुत अर्थहीन नजर आती हैं... मुझे ऐसा लगता है मानो मैं हवा का पीछा कर रहा था। इसलिए अपनी अपेक्षाओं का एक संतुलन बनाना जरूरी है। उनके लिए प्रयास हो लेकिन प्रयास सफल न होने पर निराशा घर न करे। अपने मन का हो तो अच्छा और न हो तो और भी अच्छा के भाव से अपनी अपेक्षाओं पर खरा उतरने का प्रयास करें।

हार से सीखने का प्रयास करें

असफलता और हार भी हमें बहुत कुछ सीखने का मौका देती है। जब भी हम हारते हैं या निराश होते हैं तब हम धैर्य रखना सीखते हैं। हम सफलता के लिए अधिक उद्यत होते हैं। जब भी हार होती है तो उसे इस तरह ही देखें कि आपके प्रयास सफलता के लिए पर्याप्त नहीं थे और आपको सफलता के लिए और तैयारी की जरूरत है। निराशा में ही आशा छिपी होती है।

क्रिकेट के मैच में एक टीम हारती है लेकिन अगले मैच में वह इस हार को भुलाकर जीतने की कोशिश करती है। ऐसे भी पर्वतारोही हैं जिन्हें पर्वत ने कई बार हराया लेकिन उन्होंने जीत के लिए साहस नहीं हारा और अंतत: पर्वत उनकी इच्छाशक्ति के आगे झुका। तो अपनी हार में उन कारणों को ढूंढने का प्रयास होना चाहिए जिनसे आप सफलता से दूर रहे और उन्हें सुधारने का प्रयास आपको विजेता बनाता है। जब आप एक एक करके अपनी कमजोरियों पर काम करते हैं तो आप खुद को विपरीत परिस्थितियों के योग्य बना लेते हैं।

मित्रों की लें मदद

जब भी जीवन में हताशा से सामना हो तो अपने मित्रों के साथ समय बिताएं। ऐसे समय जबकि आप हताशा महूसस कर रहे हैं तब खुद को दुनिया से अलग-थलग न कर लें क्योंकि इस तरह आप अपने ही विचारों में कैद हो जाते हैं। मित्र उन खिड़कियों की तरह होते हैं जिनसे जीवन में ताजी हवा आती है। चाहे कितनी भी विकट परिस्थिति क्यों न हो एक अच्छा मित्र आपको गहन निराशा के क्षणों से उबारने का काम करता है।

अक्सर हम परिवार के साथ बहुत सी बातें साझा नहीं कर पाते हैं क्योंकि उम्र और समझ का अंतर बीच में होता है लेकिन हमारे मित्र हमारी मनोस्थिति और हमारे बर्ताव को बेहतर तरीके से समझते हैं। वे हमारी जरूरतों से परिचित होते हैं और इसलिए उनके सामने अपनी पीड़ा कहने में किसी तरह की झिझक नहीं होना चाहिए। वे ठीक समाधान तलाशने में हमारी मदद करते हैं। एक अच्छा दोस्त विकट परिस्थितियों में हमारा सबसे बेहतर मार्गदर्शक होता है।

प्रिय चीजों से जुड़ें

जब भी आप कमजोर क्षणों से गुजरें तो उन चीजों से जुड़ें जो आपको खुशी देती हों। आपका आनंद चाहे जो हो उसमें डूबने की कोशिश करें। जब आप अपने आनंद के क्षेत्र में डूबेंगे तो निराशा से उबर जाएंगे। निराशा हम इसलिए महसूस करते हैं कि हमें जीवन का कोई अर्थ नजर नहीं आता है लेकिन जब हम अपनी रूचि की चीजों को देखते हैं तो जीवन के प्रति आशा बंधती है।

कोई अच्छी पुस्तक, कविता, संगीत, फिल्म या मनबहलाव का कोई भी अन्य माध्यम जो हमारा ध्यान निराशा के उन क्षणों से कहीं ओर ले जाता हो वह ऐसे समय में हमारा आश्रय बन सकता है और हमें राहत दे सकता है।

भूत ना भविष्य केवल वर्तमान

जब भी हम बीती चीजों के बारे में ज्यादा सोचते हैं तो मन में एक अजीब सी उदासी घर कर ही जाती है, इसी तरह भविष्य के बारे में सोचते हुए भी हम आशंकित और डरे हुए रहते हैं। इनका असर हमारे वर्तमान को खराब करता है। अगर हम आज में ही जिएं और आज हम क्या अच्छा कर सकते हैं उस विचार के साथ आगे बढ़ें तो शायद जीवन में निराशा के लिए कोई जगह नहीं होगी।

हम जो नहीं कर पाए उसके लिए उदास क्यों होना, हम आज जो कर सकते हैं उस पर बीते दिनों का असर आखिर क्यों आने देना चाहिए। बीती बातों को भुलाकर अगर आज में ही अपनी उर्जा लगाई जाए तो बेहतर नतीजे हमें आगे बढ़ने को ही प्रेरित करेंगे। कल में अटके रहकर हम अपने आज को भी प्रभावित करते हैं और आने वाले कल को भी।

सभी को प्रसन्न करना असंभव

जब आप अपने आसपास मौजूद सभी लोगों को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं तो इस तरह के लक्ष्य को कभी प्राप्त नहीं कर पाते हैं। ऐसे में निराशा आपको घेरे यह बहुत संभव है। इस तरह की स्थिति से उपजने वाली निराशा से खुद को बचाना हो तो आपको अपनी प्रसन्नाता के लिए काम करना चाहिए। अपनी प्राथमिकताएं तय करना बहुत जरूरी है। याद रहे जरूरत से ज्यादा वादे भी हमें हताशा की स्थिति में डाल सकते हैं।

किसी की मदद कीजिए

जब आप खिन्न या हताश महसूस कर रहे हैं तो अपने आसपास किसी की मदद करने का कोई अवसर तलाशिए। दूसरों के साथ जुड़िए। दूसरों की प्रसन्नता के लिए छोटा काम हाथ में लीजिए, आपको अपना जीवन अर्थवान नजर आने लगेगा।

जीवन मूल्यवान लगने लगेगा। हम अक्सर ढर्रे पर चलते हुए भी जीवन का मूल्यांकन करने में असमर्थ हो जाते हैं। हमें लगता है कि जीवन उतनी ही दूर तक है जितना हम देख पा रहे हैं लेकिन जीवन उससे भी आगे है, वहां भी जहां हम नहीं देख पा रहे।

मानव जीवन की स्थायी निधि है चरित्र

मानव जीवन की स्थायी निधि है चरित्र

सद्भावना के लिए आवश्यक है चरित्र। सद्विचारों और सत्कर्मों की एकरूपता ही चरित्र है। जो अपनी इच्छाओं को नियंत्रित रखते हैं और उन्हें सत्कर्मों का रूप देते हैं, उन्हीं को चरित्रवान कहा जा सकता है। संयत इच्छाशक्ति से प्रेरित सदाचार का नाम ही चरित्र है।

चरित्र मानव जीवन की स्थायी निधि है। जीवन में सफलता का आधार मनुष्य का चरित्र ही है। चरित्र मानव जीवन की स्थायी निधि है। सेवा, दया, परोपकार, उदारता, त्याग, शिष्टाचार और सद्व्यवहार आदि चरित्र के बाह्य अंग हैं, तो सद्भाव, उत्कृष्ट चिंतन, नियमित-व्यवस्थित जीवन, शांत-गंभीर मनोदशा चरित्र के परोक्ष अंग हैं। किसी व्यक्ति के विचार इच्छाएं, आकांक्षाएं और आचरण जैसा होता है, उन्हीं के अनुरूप चरित्र का निर्माण होता है।

उत्तम चरित्र जीवन को सही दिशा में प्रेरित करता है। चरित्र निर्माण में साहित्य का बहुत महत्व है। विचारों को दृढ़ता और शक्ति प्रदान करने वाला साहित्य आत्म निर्माण में बहुत योगदान करता है। इससे आंतरिक विशेषताएं जाग्रत होती हैं। यही जीवन की सही दिशा का ज्ञान है।

मनुष्य जब अपने से अधिक बुद्धिमान, गुणवान, विद्वान और चरित्रवान व्यक्ति के संपर्क में आता है, तो उसमें स्वयं ही इन गुणों का उदय होता है। वह सम्मान का पात्र बन जाता है। जब मनुष्य साधु-संतों और महापुरुषों की संगति में रहता है, तो यह प्रत्यक्ष सत्संग होता है, किंतु जब महापुरुषों की आत्मकथाएं और श्रेष्ठ पुस्तकों का अध्ययन करता है, तो उसे परोक्ष रूप से सत्संग का लाभ मिलता है, जो सद्भावना के लिए आवश्यक है। मनुष्य सत्संग के माध्यम से अपनी प्रकृति को उत्तम बनाने का प्रयत्न कर सकता है, जिससे सद्भावना कायम रखी जा सके।

ईश्वर मनुष्य का एक ऐसा अंतर्यामी मित्र है कि मन में ज्यों ही बुरे संस्कार और विचार उठते हैं उसी समय भय, शंका और लज्जा के भाव पैदा करके वह बुराई से बचने की प्रेरणा देता है। इसी प्रकार अच्छा काम करने का विचार आते ही उल्लास और हर्ष की तरंग मन में उठती है।

किसी भी कार्य की सफलता और असफलता की भी चर्चा की जाए, तो भी स्नेह और सहानुभूति के बगैर सफलता भी असफलता में बदल जाएगी या फिर वह प्राप्त ही नहीं होगी। जो लोग क्रूर और असंवेदनशील हैं, उनके ये दोष ही मार्ग में कांटें बनकर बिखर जाएंगे।

सकारात्मक सोच में चिंतन का महत्व

सकारात्मक सोच में चिंतन का महत्व

चिंतन एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। इसमें नए विचार आपके दिमाग में आते हैं जो निर्णय लेने में सहायक होते हैं। चिंतन में आए विचार की तुरंत प्रतिक्रिया होती है। विचार को आप पसंद करते हैं या नापसंद लेकिन आपका विवेक विचार को मूर्त रूप देने के लिए अच्छा या बुरा के बारे में सोचता है। और इस तरह से आप सही निर्णय को जानकर संभावनाओं का चुनाव करते हैं।

ऐसे करें चिंतन
आप हर तरह की संभावनाओं के बारे में सोचें।दिमाग को खुला छोड़ दें और जो भी आपके सामने आए उस पर विचार करें।वास्तविक विश्लेषण करें, क्योंकि आप स्वयं जानते हैं।विवेक से काम लेकर असंभव शब्द को अलग कर दें।
सकारात्मक चिंतन पर सकारात्मक प्रेरक 'रॉबर्ट एच. शुलर' के विचारों से प्रेरणा लेना चाहिए। उनके विचारों के अनुसार, 'संभावनापूर्ण चिंतन विचारों का मैनेजमेंट है। औसत मस्तिष्क में हर दिन दस हजार विचार आते हैं।

इनमें से अधिकांश नकारात्मक होते हैं। संभावनापूर्ण चिंतन सकारात्मक विचारों को नकारात्मक विचारों से अलग करता है। संभावनापूर्ण चिंतक हर विचार में यह खोजते हैं कि क्या इसमें संभावना है।' इसीलिए हमेशा अपने सहयोगियों की सलाह जरूर लेनी चाहिए।

उनका मानना था कि महान व्यक्तियों का जीवन चरित्र बताता है कि उनकी सफलता में उनके सहयोगियों का कितना अधिक स्थान था। उन्होंने कुछ उदाहरण देकर यह बात स्पष्ट की।

अकबर ने बादशाह बनने पर अपने नवरत्नों (सलाहकारों) की मदद से राज्य का प्रबंधन कुशल तरीके से किया।

महाभारत-काल का अर्जुन व्याकुल था। वह कुशल योद्धा था, परंतु उसकी सोच स्पष्ट नहीं थी। अर्जुन का राज्य ले लिया गया था, अर्जुन की पत्नी द्रोपदी का अपमान किया गया, युद्ध के मैदान में भी वह निश्चित नहीं था कि वह अपने रिश्तेदारों, गुरुओं और अपने मित्रों करे या न करे। इससे अपने सखा श्रीकृष्ण को सलाहकार बनाया और तब उनके परामर्श से वह इतिहास बनाने में सफल हो सके।

जर्मनी के जीव वैज्ञानिक एयरलिक के मधुर व्यवहार व संबंधों से प्रभावित होकर उनके सहयोगी समर्पण की भावना से काम करते थे। एक धनी विधवा ने प्रयोगशाला बनाने के लिए उन्हें धन दिया था, जिसके बदले में उन्होंने अपनी प्रयोगशाला का नाम उसके पति के नाम पर रख दिया।

इटेलियन फिजिस्ट मारकोनी( 1874-1937) में उत्साहपूर्ण सहयोग पाने की अपूर्व क्षमता थी और इसी गुण की वजह से उन्होंने 35 वर्ष की उम्र में यानी ( 1909) में भौतिकी का नोबल पुरस्कार मिला।

ब्रिटेन के प्रसिद्ध फिजिसिस्ट अर्नेस्ट रदरफोर्ड (1871-1937) के साथ सहयोग करने वाले कई प्रसिद्ध वैज्ञानिक भी थे। उनकी व्यंग्य शैली की क्षमता के कारण ही वह अपने साथियों का काम का बोझ हल्का करते रहते थे।

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