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रविवार, 11 अगस्त 2019

राजस्थानी भाषा की

बाणियो 'व्यापार' बिना,
दुल्हन 'सिणगार' बिना,
बीन्द  'बारात'  बिना,
चौमासो 'बरसात' बिना.....जचे ही कोनी।

बाग 'माळी' बिना,
जीमणो 'थाळी' बिना,
कविता 'छंद' बिना,
पुष्प 'सुगन्ध' बिना.....जचे ही कोनी।

मन्दिर 'शंख' बिना,
मोरियो 'पंख' बिना,
घोड़ो 'चाल' बिना,
गीत 'सुर-ताल' बिना.....जचे ही कोनी।

मर्द 'मूँछ' बिना,
डांगरो 'पूँछ' बिना,
ब्राह्मण 'चोटी' बिना,
पहलवान 'लंगोटी' बिना.....जचे ही कोनी।

रोटी 'भूख' बिना,
खेजड़ी 'रुँख' बिना,
चक्कु 'धार' बिना,
पापड़ 'खार' बिना.....जचे ही कोनी।

घर 'लुगाई' बिना,
सावण 'पुरवाई' बिना,
हिण्डो 'बाग' बिना,
शिवजी 'नाग' बिना.....जचे ही कोनी।

कूवो 'पाणी' बिना,
तेली 'घाणी' बिना,
नारी 'लाज' बिना,
संगीत 'साज' बिना.....जचे ही कोनी।

इत्र 'महक' बिना,
पंछी 'चहक' बिना,
मिनख 'परिवार' बिना,
टाबर 'संस्कार' बिना.....जचे ही कोनी।

         लोक वाणी....!!!!

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