बुधवार, 2 अक्टूबर 2019

भगवत गीता के किस श्लोक से आप सबसे ज्यादा प्रभावित है ? कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सग्ड़ोस्त्वकर्मणि। । यह श्लोक श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय से लिया गया, सर्वाधिक महत्वपूर्ण श्लोकों में से एक है. भावार्थ - केवल कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, लेकिन कर्म के फलों पर तुम्हारा अधिकार नहीं है. इसलिए सिर्फ फल पाने की इच्छा से कर्म मत करो और ना ही कर्म करने में तुम्हारी आसक्ति निहित होनी चाहिए.श्री कृष्ण ने धनुर्धारी अर्जुन को यह उपदेश कुरुक्षेत्र के मैदान में उस वक्त दिया था, जब अर्जुन युद्ध-क्षेत्र में अपने बंधु-बांधवों को देखकर अपने कर्म से विमुख हो गए थे. श्री कृष्ण के उपदेश के बाद अर्जुन अपना कर्तव्य समझ सके थे. इसके पश्चात उन्होंने युद्ध प्रारंभ किया. जिसमें सत्य व कर्म की विजय हुई. श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में मनुष्य मात्र को उपदेश दिया कि 'कर्म करो फल की चिंता मत करो'. फल की इच्छा रखते हुए जब कर्म करते हैं और इच्छित फल प्राप्त नहीं होता, तो हम दुख व शोक में डूब जाते हैं. इसलिए सुखी जीवन चाहते हो तो निष्काम भाव से कर्म करना जारी रखो. कर्म ना भूल जाएं एक बार देवताओं की श्रेष्ठता की लड़ाई में देवराज इंद्र रुष्ट हो गए व उन्होंने 12 वर्षों तक पृथ्वी पर वर्षा न करने का निर्णय लिया. लेकिन उन्होंने देखा कि बारिश न होने पर भी किसान हल जोत रहे हैं, मेंढक टर्रा रहे हैं, मोर नाच रहे हैं. सभी अपना कार्य कर रहे हैं. विस्मित भाव से इंद्र ने उनसे इसका कारण पूछा कि जब बारिश नहीं होने वाली, तो तुम सब अपना कार्य क्यों कर रहे हो? तो किसान ने जवाब दिया, "अगर हम कर्म नहीं करेंगे, तो हम हमारा काम भूल जाएंगे. कर्म ही हमारे लिए पूजा है. कर्म करना भूल गए तो हम हमारी नई पीढ़ी को क्या सिखाएंगे? जब वर्षा होगी तो हमें उस समय खेती करने का तरीका याद नहीं रहेगा." यह सुनकर देवराज इंद्र की आंखें खुल गई. उन्होने सोचा अगर मैं भी बारिश करना भूल गया तो क्या होगा? इसका परिणाम सोचते ही इंद्र ने बादलों को बरसने का आदेश दे दिया

भगवत गीता के किस श्लोक से आप सबसे ज्यादा प्रभावित है ?

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सग्ड़ोस्त्वकर्मणि। ।

यह श्लोक श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय से लिया गया, सर्वाधिक महत्वपूर्ण श्लोकों में से एक है.

भावार्थ - केवल कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, लेकिन कर्म के फलों पर तुम्हारा अधिकार नहीं है. इसलिए सिर्फ फल पाने की इच्छा से कर्म मत करो और ना ही कर्म करने में तुम्हारी आसक्ति निहित होनी चाहिए.श्री कृष्ण ने धनुर्धारी अर्जुन को यह उपदेश कुरुक्षेत्र के मैदान में उस वक्त दिया था, जब अर्जुन युद्ध-क्षेत्र में अपने बंधु-बांधवों को देखकर अपने कर्म से विमुख हो गए थे.

श्री कृष्ण के उपदेश के बाद अर्जुन अपना कर्तव्य समझ सके थे. इसके पश्चात उन्होंने युद्ध प्रारंभ किया. जिसमें सत्य व कर्म की विजय हुई.


श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में मनुष्य मात्र को उपदेश दिया कि 'कर्म करो फल की चिंता मत करो'. फल की इच्छा रखते हुए जब कर्म करते हैं और इच्छित फल प्राप्त नहीं होता, तो हम दुख व शोक में डूब जाते हैं. इसलिए सुखी जीवन चाहते हो तो निष्काम भाव से कर्म करना जारी रखो.

कर्म ना भूल जाएं

एक बार देवताओं की श्रेष्ठता की लड़ाई में देवराज इंद्र रुष्ट हो गए व उन्होंने 12 वर्षों तक पृथ्वी पर वर्षा न करने का निर्णय लिया. लेकिन उन्होंने देखा कि बारिश न होने पर भी किसान हल जोत रहे हैं, मेंढक टर्रा रहे हैं, मोर नाच रहे हैं. सभी अपना कार्य कर रहे हैं.



विस्मित भाव से इंद्र ने उनसे इसका कारण पूछा कि जब बारिश नहीं होने वाली, तो तुम सब अपना कार्य क्यों कर रहे हो? तो किसान ने जवाब दिया, "अगर हम कर्म नहीं करेंगे, तो हम हमारा काम भूल जाएंगे. कर्म ही हमारे लिए पूजा है. कर्म करना भूल गए तो हम हमारी नई पीढ़ी को क्या सिखाएंगे? जब वर्षा होगी तो हमें उस समय खेती करने का तरीका याद नहीं रहेगा."

यह सुनकर देवराज इंद्र की आंखें खुल गई. उन्होने सोचा अगर मैं भी बारिश करना भूल गया तो क्या होगा? इसका परिणाम सोचते ही इंद्र ने बादलों को बरसने का आदेश दे दिया

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