किसी जंगल मेंएक चतुर और बुद्धिमान गीदड़ रहता था|उसकेचार मित्र बाघ,चूहा, भेड़िया और नेवला भी उसी जंगलमें रहतेथे| एक दिन चरोंशिकार करनेजंगल मेंजा रहे थे|जंगलमें उन्होंनेएक मोटा ताजा हिरन देखा उन्होंनेउसे पकड़नेकी कोशिश की परन्तु असफल रहे|उन्हों ने आपस में मिलकर विचार किया|गीदड़ ने कहा यह हिरन दौड़नेमें काफी तेज है| और काफी चतुर भी है|बाघ भाई! आपनेइसे कई बार मारने की कोशिश की पर सफल नहींहोसके|अब ऐसा उपाय किया जाए कि जब वह हिरन सो रहा होतो चूहा भाई जाकर धीरे धीरेउसका पैर कुतर दे, जिस सेउसके पैर में जखमहो जाये| फिर आप पकड़ लीजिए तथा हमसब मिलकर इसेमौज सेखाएं| सब ने मिलजुल कर वैसेही किया|जखमकेकारन हिरन तेज नहींदौड़ पाया और मारा गया| खानेके समय गीदड़ ने कहा अबतुमलोग स्नान कर आओ मैंइसकी देख भाल करता हूँ| सब के चलेजानेपर गीदड़ मन-ही-मन विचार करने लगा|तब तक बाघ स्नान कर केलौट आया| गीदड़ कोचिंतित देख कर बाघ नेपूछा- मेरे चतुर मित्र तुमकिस उधेड़बुन मेंपड़ेहो? आओ आज इस हिरन को खाकर मौज मनाएँ| गीदड़ नेकहा बाघ भाई!चूहेनेमुझ से कहा है कि बाघ केबल को धिक्कार है! हिरन तोमैंने मारा है| आज वह बलवान बाघ मेरी कमाई खाएगा| सो उसकी यह धमंड भरी बात सुन कर मैतो अबहिरन को खाना अच्छा नहीं समझाता|बाघ ने कहा- अच्छा ऐसी बात है? उसनेतो मेरी आखेंखोल दीं| अब मेंअपनेही बलबूतेपर शिकार कर केखाऊंगा|
यह कह कर बाघ चला गया|उसी समय चूहा आ गया|गीदड़ नेचूहे सेकहा-चूहेभाई! नेवला मुझ सेकह रहा था कि बाघ केकाटने सेहिरन केमांस में जहर मिल गया है|मैंतो इसेखाऊंगा नहीं, यदि तुमकहो तो मैंचूहेको खाजाऊँ|अब तुमजैसा ठीक समझो करो| चूहा डर कर अपनेबिल मेंघुस गया|अब भेदियेकी बारी आई|गीदड़ नेकहा- भेड़िया भाई! आज बाघ तुमपर बहुत नाराज हैमुझे तोतुम्हारा भला नहींदिखाई देता| वह अभी आनेवाला है| इसलिए जो ठीक समझो करो| यह सुनकर भेड़िया दुमदबाकर भाग खड़ा हुआ|तब तक नेवला भी आ गया|गीदड़ ने कहा- देख रेनेवले!मैंनेलड़कर बाघ भेड़िये और चूहेको भगा दिया है|यदि तुझेकुछ घमंडहैतो आ,मुझ से लड़ ले और फिर हिरन का मांस खा|नेवलेनेकहा- जब सभी तुमसेहार गए तो मेंतुमसेलडनेकी हिम्मत कैसेकरूँ? वह भी चला गया|अबगीदड़ अकेलेही मांस खानेलग गया|इस तरह गीदड़ नेअपनी चतुराई से बाघ जैसेताकतवर को भी मात देदी|
समाप्त
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