Govatsa Dwadashi 2019: गोवत्स द्वादशी कब है, जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

Govatsa Dwadashi: सनातन धर्म में हिंदी कैलेंडर के अनुसार कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की द्वादशी (12वें दिन) को गोवत्स द्वादशी का त्योहार मनाया जाता है। यह त्योहार गाय को समर्पित है। अंग्रेजी कलैंडर के अनुसार इस बार गोवत्स द्वादशी शुक्रवार (25 अक्टूबर) को पड़ेगी।
हिंदी पंचांग के अनुसार इस बार गोवत्स द्वादशी गुरुवार (24 अक्टूबर) रात 10 बजकर 19 मिनट से शुरू होकर अगले दिन यानी 25 अक्टूबर को शाम 7 बजकर 8 मिनट तक रहेगी।
यह त्योहार धनतेरस से एक दिन पहले मनाया जाता है। गोवत्स द्वादशी के दिन गाय-बछड़ों की पूजा की जाती है। पूजा के बाद गाय-बछड़ों को खाने के लिए गेंहू और उड़द से बनी चीजें दी जाती हैं।
गोवत्स द्वादशी को विधि पूर्वक मनाने वाले व्रतधारी इस दिन गेंहू और दूध से बनी चीजों के सेवन से परहेज करते हैं।
गोवत्स द्वादशी को नंदिनी व्रत भी कहते हैं। हिंदुओं में नदिनी एक पवित्र गाय का नाम है। महाराष्ट्र में गोवत्स द्वादशी को वासु बरस के नाम से भी जाना जाता है। गोवत्स द्वादशी को दिवाली शुरू होने का पहले दिन माना जाता है।
गोवत्स द्वादशी शुभ मुहूर्त
गोवत्स द्वादशी का शुभ मुहूर्त शुक्रवार (25 अक्टूबर) को शाम 05:42 बजे से 08:15 बजे तक है। प्रदोष काल का समय दो घंटे तैतीस मिनट है।
गोवत्स द्वादशी पूजा विधि
पूजा विधि एकदम सरल है। स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लें। अगर आपके पास पालतू गाय या बछड़ा या दोनों हैं तो उन्हें भी स्नान कराएं। अपनी श्रद्धानुसार गाय और बछड़े को नया वस्त्र ओढ़ाएं। फूल की माला पहनाएं, माथे पर चंदन का तिलक लगाएं। तांबे के पात्र में सुगंध, अक्षत, तिल, जल और फूल लेकर प्रक्षालन करें। अगर आपके पास गाय नहीं है तो किसी गौशाला जाकर गाय की सेवा कर सकते हैं। यह भी संभव न हो तो आस पास सड़क पर घूमने वाली गाय को भोजन खिला सकते हैं। अगर किसी तरह से भी गौ माता का मिलना सुलभ न हो को गीली मिट्टी से गाय की प्रतिमा बनाकर उसकी पूजा करें।
गौ माता का प्रक्षालन करते वक्त इस मंत्र का उच्चारण करें-
क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते|
सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्य नमो नम:||
अब गाय को गेंहू या उड़द से बनी खाने की चीजें खिलाएं और इस मंत्र का उच्चारण करें-
सुरभि त्वं जगन्मातर्देवी विष्णुपदे स्थिता |
सर्वदेवमये ग्रासं मया दत्तमिमं ग्रस ||
तत: सर्वमये देवि सर्वदेवैरलड्कृते |
मातर्ममाभिलाषितं सफलं कुरु नन्दिनी ||
इसके बाद द्वादशी की लोक कथा सुन या पढ़ सकते हैं। गोवत्स द्वादशी का व्रत रखने वालों को केवल एक बार फलाहार करना चाहिए
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