बुधवार, 28 फ़रवरी 2018

Pawan Panchariya ke alfaz 2018 बतौनी कछुआ एक तालाबमेंएक कछुआ रहता था। उसी तलाबमेंदो हंस तैरनेकेलिएउतरतेथे। हंस बहुत हंसमुख और मिलनसार थे। कछुए और उनमेंदोस्ती हतेदेर न लगी। हंसो को कछुए का धीमे-धीमेचलना और उसका भोलापन बहुत अच्छा लगा। हंस बहुत ज्ञानी भी थे। वेकछुए को अदभुत बातेंबताते। ॠषि-मुनियों की कहानियां सुनाते। हंस तो दूर-दूर अनोखी बातेंकछुए को बताते। कछुआ मंत्रमुग्ध होकर उनकी बातेंसुनता। बाकी तो सबठीक था,पर कछुएको बीच मेंटोका-टाकी करनेकी बहुत आदत थी। अपने सज्जन स्वभावकेकारण हंस उसकी इस आदत का बुरा नहीं मानतेथे। उन तीनोंकी घनिष्टता बढती गई। दिन गुजरतेगए। एक बार बडेजोर का सुखा पडा। बरसात के मौसममेंभी एक बूंद पानी नहींबरसा। उस तालाबका पानी सूखनेलगा। प्राणी मरने लगे,मछलियांतो तडप-तडपकर मर गईं। तालाबका पानी और तेजी सेसूखने लगा। एक समय ऐसा भी आया कि तालाबमेंखाली कीचडरह गया। कछुआ बडे संकट मेंपड गया। जीवन-मरण का प्रश्न खडा हो गया। वहीं पडा रहता तोकछुएका अंत निश्चित था। हंस अपनेमित्र पर आए संकट को दूर करनेका उपाय सोचनेलगे। वेअपनेमित्र कछुएको ढाडस बंधाने का प्रयत्न करते और हिम्म्त न हारनेकी सलाह देते। हंस केवल झूठा दिलासा नहींदे रहेथे। वेदूर-दूर तक उडकर समस्या का हल ढूढते। एक दिन लौटकर हंसो नेकहा “मित्र,यहांसे पचास कोस दूर एक झील हैं।उसमेंकाफी पानी हैं तुमवहांमजे सेरहोगे।” कछुआ रोनी आवाज में बोला “पचास कोस? इतनी दूर जानेमेंमुझेमहीनोंलगेंगे। तबतक तोमैंमर जाऊंगा।”कछुए की बात भी ठीक थी। हंसोनेअक्ल लडाईऔर एक तरीका सोच निकाला। वे एक लकडी उठाकर लाए और बोले “मित्र,हमदोनोंअपनी चोंच में इस लकडी केसिरेपकडकर एक साथ उडेंगे। तुमइस लकडी को बीच मेंसेमुंह सेथामे रहना। इस प्रकार हमउस झील तक तुम्हें पहुंचा देंगे उसकेबादतुम्हें कोई चिन्ता नहीं रहेगी।” उन्होंनेचेतावनी दी “पर याद रखना, उडान केदौरान अपना मुंह न खोलना। वरना गिर पडोगे।” कछुए ने हामी में सिर हिलाया। बस,लकडी पकडकर हंस उडचले। उनके बीच में लकडी मुंह दाबे कछुआ। वेएक कस्बे केऊपर से उड रहेथेकि नीचेखडे लोगोंने आकाश में अदभुत नजारा देखा। सबएक दूसरे को ऊपर आकाश का दॄश्य दिखाने लगे। लोग दौड-दौडकर अपने चज्जोंपर निकलआए। कुछ अपनेमकानोंकी छतोंकी ओर दौडे। बच्चे बूडे,औरतेंवजवान सब ऊपर देखनेलगे। खूबशोर मचा। कछुए की नजर नीचेउन लोगोंपर पडी। उसे आश्चर्य हुआ कि उन्हेंइतनेलोग देख रहेहैं। वह अपनेमित्रोंकी चेतावनी भूल गया और चिल्लाया “देखो,कितनेलोग हमेंदेख रहे है!”मुंह के खुलतेही वह नीचेगिर पडा।

बतौनी कछुआ

एक तालाबमेंएक कछुआ रहता था। उसी तलाबमेंदो हंस तैरनेकेलिएउतरतेथे। हंस बहुत हंसमुख और मिलनसार थे। कछुए और उनमेंदोस्ती हतेदेर न लगी। हंसो को कछुए का धीमे-धीमेचलना और उसका भोलापन बहुत अच्छा लगा। हंस बहुत ज्ञानी भी थे। वेकछुए को अदभुत बातेंबताते। ॠषि-मुनियों की कहानियां सुनाते। हंस तो दूर-दूर

अनोखी बातेंकछुए को बताते। कछुआ मंत्रमुग्ध होकर उनकी बातेंसुनता। बाकी तो सबठीक था,पर कछुएको बीच मेंटोका-टाकी करनेकी बहुत आदत थी। अपने सज्जन स्वभावकेकारण हंस उसकी इस आदत का बुरा नहीं मानतेथे। उन तीनोंकी घनिष्टता बढती गई। दिन गुजरतेगए। एक बार बडेजोर का सुखा पडा। बरसात के मौसममेंभी एक बूंद पानी नहींबरसा। उस तालाबका पानी सूखनेलगा। प्राणी मरने लगे,मछलियांतो तडप-तडपकर मर गईं। तालाबका पानी और तेजी सेसूखने लगा। एक समय ऐसा भी आया कि तालाबमेंखाली कीचडरह गया। कछुआ बडे संकट मेंपड गया। जीवन-मरण का प्रश्न खडा हो गया। वहीं पडा रहता तोकछुएका अंत निश्चित था। हंस अपनेमित्र पर आए संकट को दूर करनेका उपाय सोचनेलगे। वेअपनेमित्र कछुएको ढाडस बंधाने का प्रयत्न करते और हिम्म्त न हारनेकी सलाह देते। हंस केवल झूठा दिलासा नहींदे रहेथे। वेदूर-दूर तक उडकर समस्या का हल ढूढते। एक दिन लौटकर हंसो नेकहा “मित्र,यहांसे पचास कोस दूर एक झील हैं।उसमेंकाफी पानी हैं तुमवहांमजे सेरहोगे।”

कछुआ रोनी आवाज में बोला “पचास कोस? इतनी दूर जानेमेंमुझेमहीनोंलगेंगे। तबतक तोमैंमर जाऊंगा।”कछुए की बात भी ठीक थी। हंसोनेअक्ल लडाईऔर एक तरीका सोच निकाला। वे एक लकडी उठाकर लाए और बोले “मित्र,हमदोनोंअपनी चोंच में इस लकडी केसिरेपकडकर एक साथ उडेंगे। तुमइस लकडी को बीच मेंसेमुंह सेथामे रहना। इस प्रकार हमउस झील तक तुम्हें पहुंचा देंगे उसकेबादतुम्हें कोई चिन्ता नहीं रहेगी।” उन्होंनेचेतावनी दी “पर याद रखना, उडान केदौरान अपना मुंह न खोलना। वरना गिर पडोगे।” कछुए ने हामी में सिर हिलाया। बस,लकडी पकडकर हंस उडचले। उनके बीच में लकडी मुंह दाबे कछुआ। वेएक कस्बे केऊपर से उड रहेथेकि नीचेखडे लोगोंने आकाश में अदभुत नजारा देखा। सबएक दूसरे को ऊपर आकाश का दॄश्य दिखाने लगे। लोग दौड-दौडकर अपने चज्जोंपर निकलआए। कुछ अपनेमकानोंकी छतोंकी ओर दौडे। बच्चे बूडे,औरतेंवजवान सब ऊपर देखनेलगे। खूबशोर मचा। कछुए की नजर नीचेउन लोगोंपर पडी। उसे आश्चर्य हुआ कि उन्हेंइतनेलोग देख रहेहैं। वह अपनेमित्रोंकी चेतावनी भूल गया और चिल्लाया “देखो,कितनेलोग हमेंदेख रहे है!”मुंह के खुलतेही वह नीचेगिर पडा। नीचे उसकी हड्डी-पसली का भी पता नहींलगा।

समाप्त

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