बहुत समय पहलेकी बात है|हिरण्याक्षका एक बेटा था,जिसका नामअन्धक था| अन्धक नेतपस्या केद्वारा ब्रह्मा जी की कृपा से नमारेजानेका वर प्राप्त कर के त्रिलोकी का उपभोग करतेहुए इन्द्रलोक को जीत लिया और वह इन्द्र को पीड़ित करनेलगा| देवतागण उस सेडर कर मंदरपर्वत की गुफा मेंप्रविष्ट हो गए| महादैत्य अन्धक भी देवताओं को पीड़ित करता हुआ गुफा वालेमंदरपर्वत पर पहुँच गया|सभी देवताओंनेभगवानशिवसे प्रार्थना की|यह सबवृतांत सुन कर भगवान शिव अपनेगणेश्वरोंकेसाथ अन्धक केसमक्ष पहुँच गएतथा उन्होंने उसके समस्त राक्षसोंको भस्मकर के अन्धक को अपनेत्रिशूल सेबींध डाला|यह देख कर ब्रह्मा,विष्णु आदि सभी देवगण हर्षध्वनि करनेलगे| त्रिशूल सेबिंधेहुए उस अन्धक के मन मेंसात्विक भावजागृत होगए|वह सोचनेलगा- शिवकी कृपा से मुझेयह गति प्राप्त हुईहै|अपनेपुण्य-गौरव केकारण वह अन्धक उसी स्थिति में भगवान शिव की स्तुति करनेलगा|उसकी स्तुति सेप्रसन्न हो कर भगवान शंकर दयापूर्वक उसकी ओर देखतेहुए बोले- हे अन्धक! वर मांगो, तुमक्या चाहतेहो? अन्धक नेगदगदबाणी मेंमहेश्वर सेकहा-हेभगवन! यदि आप मुझपर प्रसन्न हैं तो मुझेयही वर प्रदान करेंकी आप में मेरी सदा भक्ति हो| अन्धक का वचन सुन कर शिवने उस दैत्येन्द्र को अपनी दुर्लभ भक्ति प्रदान की और त्रिशूल सेउतार कर उसे गणाधिपद प्रदान किया|
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