मंगलवार, 4 दिसंबर 2018

स्वयं से करें प्रेम

स्वयं से करें प्रेम

स्वामी विवेकानंद 'राजयोग में लिखते हैं, 'प्रत्येक इंसान ईश्वर का अंश है। यदि कोई इंसान ईश्वर के प्रति अपनी भक्ति दिखाना चाहता है, तो सबसे पहले स्वयं की अवहेलना करना छोड़े और स्वयं से प्यार करना सीखे। प्रेम से ही चेतना जाग्रत होती है।

जब मैंने योग और ध्यान के माध्यम से खुद को जगाया, तभी मुझे अपनी अंतर्निहित शक्तियों का पता चला। इन्हीं शक्तियों के बल पर मैं अमेरिका के शिकागो (1893) में विश्व धर्म संसद में पश्चिमी समाज को भारतीय धर्म व दर्शन से परिचित करा पाया। किसी भी इंसान के लिए खुद की गरिमा सर्वोपरि है। हमारा लक्ष्य अपने भीतर के ईश्वर (स्वयं की तलाश) को खोजना है, जिसे कर्म, भक्ति और ध्यान के जरिये पाया जा सकता है।

अपनी खूबियों से प्रेम

प्रवचन सभा के दौरान एक व्यक्ति ने ओशो से पूछा, 'दूसरों की अच्छाइयों या व्यवहार के प्रति तो आकर्षण हो जाता है, लेकिन स्वयं से प्यार किस तरह करें? इसके उत्तर में ओशो ने एक कहानी सुनाई :

बहुत समय पहले एक शिष्य जेन गुरु से शिक्षा प्राप्त कर घर जा रहा था। रात अंधेरी थी, इसलिए उसने गुरु से एक दीपक उपलब्ध कराने का आग्रह किया, ताकि उसे रास्ता तलाशने में दिक्कत न हो। गुरु ने उसके हाथ पर एक दीपक रख दिया, लेकिन अभी वह कुछ दूर ही गया था कि उन्होंने फूंक मारकर दीपक बुझा दिया। शिष्य घबरा गया। तब गुरु ने कहा, दूसरे के दीपक के सहारे आगे बढ़ने की बजाय भीतर के दीपक से अपना रास्ता खोजना चाहिए। यह प्रयास करते हुए तुम्हारे भीतर एक नया दीपक जल उठेगा। एक बार जब आत्मा का दीपक प्रकाशित हो जाएगा, फिर तुम किसी भी आंधी या तूफान का मुकाबला करने में सक्षम हो जाओगे। इसलिए अपने अंदर की शक्तियों को पहचान कर उन्हें जगाओ। अपनी खूबियों से प्रेम करो। 'अपनी पहचानÓ किताब में ओशो कहते हैं 'शरीर दृश्य आत्मा है, तो आत्मा अदृश्य शरीर है। शरीर और आत्मा कहीं भी विभाजित नहीं हैं। वे एक-दूसरे के हिस्से हैं। व्यक्ति को खुद को प्रेम करना है। उसे स्वयं को आदर-सम्मान देना है। उसे स्वयं का आभारी होना है। तभी वह समग्रता को उपलब्ध हो सकता है, तभी एक सघनता घटित होगी।

जाग्रत होगी चेतना

'फुर्सत के क्षणों में खुद को आईने में निहारें। महज चेहरा सुंदर है या नहीं, आप मोटे हैं या पतले- इसके लिए नहीं, बल्कि अपने उन गुणों के बारे में सोचें, जिसके लिए पहले कभी आपकी किसी ने तारीफ की थी, जिन गुणों ने आपको अपनों के और करीब ला दिया था। लगातार कुछ दिनों तक यह प्रक्रिया अपनाने के बाद आप खुद में परिवर्तन महसूस करने लगेंगे। जब भी आप अपनी आंखें बंद करेंगे, तो खुद में विस्तार महसूस करेंगे। आपकी चेतना जाग्रत होने लगेगी।Ó ध्यान रहे, खुद से प्रेम करने की यह प्रक्रिया आत्ममुग्धता की सीमा को पार न करे। यह सच है कि इंसान में कुछ बुराइयां या कमजोरियां भी होती हैं। पर उन कमजोरियों के प्रति लापरवाह होने की बजाय उन्हें समाप्त करने की कोशिश भी व्यक्ति को स्वयं से जोड़ता है। शोध बताते हैं कि स्वयं से प्यार करना सफलता, खुशी और स्वस्थ संबंधों का आधार है। यह उनके मानसिक तनाव, अवसाद, बेचैनी तथा हीन भाव में कमी लाता है। महान दार्शनिक खलील जिब्रान अपनी किताब 'द प्रॉफेटÓ में कहते हैं कि मैं शारीरिक रूप से बहुत कमजोर था। पर मैंने उन कमजोरियों को कभी अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया, क्योंकि विफलता मिलने के बावजूद मुझे अपनी खूबियों पर विश्वास था।

ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति

अमेरिका की मर्सी शिमॉफ की पुस्तक 'लव फॉर नो रीजनÓ बेस्ट सेलर नॉवेल्स में शुमार है। इसका अब तक 31 भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। मर्सी कहती हैं कि स्वयं से प्यार करने का विचार व्यक्ति को स्वार्थी नहीं बनाता। आप यदि स्वयं से प्यार करेंगे, तभी दूसरों की खामियों को नजरअंदाज कर उन्हें प्रेम और आदर दे सकेंगे। अपने कार्य को कमतर न आंके। आपका कार्य सर्वश्रेष्ठ है, क्योंकि आप ईश्वर की महानतम कृति हैं। दूसरों से तुलना व्यर्थ है। तभी योगी अरविंद कहते हैं, खुद से टूटे हुए या हताश व्यक्ति का योग और साधना के जरिये ईश्वर की प्राप्ति निरर्थक है। पहले उसे अपने भीतर के ईश्वर को पहचानना होगा। इसके लिए उसे स्वयं से प्यार करना होगा।

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