सच बोलो पर मीठा भी बोलो
कभी-कभी व्यक्ति अपने चरित्र से, चिंतन से, स्वभाव से, व्यक्तित्व से, आचरण से, उपस्थिति से बहुत कुछ बोलता है। कहीं-कहीं ग्रंथों से संकेत दिए हैं कि व्यक्ति को बोलने की आवश्यकता नहीं है। बोलना तो व्यर्थ है।
महापुरुष मौन से ही संकेत दे देते हैं। उनका तो आचरण और उपस्थिति ही सब कह देती है। उनकी एक भी भंगिमा, एक भी चेष्टा, एक भी मुद्रा व्यर्थ नहीं होती। फूल कहां बोलता है, कभी नहीं बोलता। दिशाएं कहां बोलती है, कभी नहीं।
पूरी प्रकृति में कैसी चुप्पी है! आकाश कभी नहीं बोलता और जब बोलता है, सब देखते हैं। सब देखते हैं कि आकाश में गर्जना कैसी है। धरती कभी नहीं बोलती है, भूकंप के रूप में बोलती है तो सबको चौंकाती है। नदियां कभी नहीं बोलती, बाढ़ के रूप में तटबंध तोड़ती हैं तो सबको चौंकाती है।
आदमी बहुत बोलता है। चिड़िया कम बोलती है। पशु-पक्षी कम बोलते हैं। सारस, कपोत, मयूर को किसी कारण से ही बोलते सुना होगा। इसलिए मनुष्य का बोलना बहुत महत्वपूर्ण है। हमेशा अपनी वाणी पर नियंत्रण रखना चाहिए।
जो लोग अपनी वाणी पर संयम रखते हैं उनकी सभी दूर प्रशंसा होती है और जो बहुत बोलते हैं उनकी कलई खुल जाती है। इसलिए शब्दों को बहुत विचार के साथ खर्च करना चाहिए। यह इसलिए भी क्योंकि शब्द गहरे घाव करते हैं।
कई बार आपके शब्द सामने वाले को आहत कर सकते हैं, उसके आत्मविश्वास को नष्ट कर सकते हैं, उसके सम्मान को ठेस पहुंचा सकते हैं। वाक संयम, वाक माधुर्य, वाक मात्रा के बारे में बहुत कम लोगों को मालूम होता है। वाकपटु होना अलग बात है और वाक चातुर्य अलग बात है।
यह ध्यान रखना जरूरी है कि आप वाक्य नियोजन करें लेकिन उसमें अध्ययन की आहट दिखे, अनुभव दिखे, पवित्रता दिखे, गांभीर्य दिखे, सिद्धांतों का अनुगमन दिखे, परंपरा और पीढ़ियों का प्रभाव दिखे। कागा का स्वर अतिथि के आगमन की सूचना देता है लेकिन उसे कंकडी मारकर भगा दिया जाता है।
मीठा नहीं है कर्कश है, यह कहकर उसे उड़ा दिया जाता है। लेकिन जो विरह के गीत गाती है, उसकी प्रशंसा की जा रही है। कोयल कितना अच्छा बोलती है...! अरे, कोयल का स्वर तो वियोग का स्वर है। क्या बोलती है कोयल, यह किसी ने पूछा नहीं।
कोयल का आसक्ति का स्वर, विरह का स्वर हमें अच्छा लगता है। और जो संयोग का स्वर बोलता है, उस स्वर की निंदा है। इसका अर्थ है, स्वर में सार्थकता तो है पर स्वर में माधुर्य नहीं है। कुछ लोग कहते हैं कि हम तो सही-सही कह देते हैं,खरी-खरी सुना देते हैं।
अरे भई खरी सुनाओ, पर मीठी भी सुना दो। माना कि सार्थक स्वर है, स्पष्ट स्वर है, नीतिगत स्वर है, माना कि आपके स्वर में छल नहीं है, प्रपंच नहीं है, स्वर में कहीं बनावट नहीं है, लेकिन स्वर में प्रियता भी तो हो। माधुर्य हो, मुग्धता हो, बोध हो, आदर हो। जब आप ऐसा बोलोगे तो आपकी बात का ज्यादा असर होगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Share kre