गुरुवार, 20 दिसंबर 2018

इसीलिए हर तरफ होता है वसंतमय वातावरण

इसीलिए हर तरफ होता है वसंतमय वातावरण

वसंत पंचमी का अर्थ है शुक्ल पक्ष का पांचवां दिन अंग्रेजी कलेंडर के अनुसार यह पर्व जनवरी-फरवरी तथा हिन्दू तिथि के अनुसार माघ के महीने में मनाया जाता है।

वसंत को ऋतुओं का राजा अर्थात सर्वश्रेष्ठ ऋतु माना वगया है। इस समय पंचतत्त्व अपना प्रकोप छोड़कर सुहावने रूप में प्रकट होते हैं। पंचतत्त्व, जल, वायु, धरती, आकाश और अग्नि सभी अपना मोहक रूप दिखाते हैं।

दरअसल मौसम और प्रकृति में मनोहारी बदलाव होते हैं। पेड़ों पर फूल आ जाते हैं। नई कोपलें निकल आती हैं। फलों के पेड़ों में बौर आने का संकेत मिल जाता है।

इन श्रृंगारिक परिवर्तनों ने कवियों को सदैव आकर्षित किया और वसंत कविता का विषय रहा है। प्राय: हर भाषा के कवि ने बसंत का अपनी तरह से वर्णन किया है। वसंत पर्व का आरंभ वसंत पंचमी से होता है।

इसी दिन श्री अर्थात विद्या की अधिष्ठात्री देवी महासरस्वती का जन्मदिन मनाया जाता है। सरस्वती ने अपने चातुर्य से देवों को राक्षसराज कुंभकर्ण से कैसे बचाया, इसकी एक मनोरम कथा वाल्मिकी रामायण के उत्तरकांड में आती है।

कहते हैं देवी वर प्राप्त करने के लिए कुंभकर्ण ने दस हजार वर्षों तक गोवर्ण में घोर तपस्या की। जब ब्रह्मा वर देने को तैयार हुए तो देवों ने कहा कि यह राक्षस पहले से ही है, वर पाने के बाद तो और भी उन्मत्त हो जाएगा तब ब्रह्मा ने सरस्वती का स्मरण किया।

सरस्वती राक्षस की जीभ पर सवार हुईं। सरस्वती के प्रभाव से कुंभकर्ण ने ब्रह्मा से कहा, 'स्वप्न वर्षाव्यनेकानि। देव देव ममाप्सिनम।' यानी मैं कई वर्षों तक सोता रहूं, यही मेरी इच्छा है।

ब्राह्मण ग्रंथों के अनुसार वाग्देवी सरस्वती ब्रह्मस्वरूपा, कामधेनु तथा समस्त देवों की प्रतिनिधि हैं। ये ही विद्या, बुद्धि और ज्ञान की देवी हैं। अमित तेजस्विनी व अनंत गुणशालिनी देवी सरस्वती की पूजा-आराधना के लिए माघ मास की पंचमी तिथि निर्धारित की गई है।

वसंत पंचमी को इनका आविर्भाव दिवस माना जाता है। अत: वागीश्वरी जयंती व श्रीपंचमी नाम से भी यह तिथि प्रसिद्ध है। वसंत पंचमी को सभी शुभ कार्यों के लिए अत्यंत शुभ मुहूर्त माना गया है।

मुख्यत: विद्यारंभ, नवीन विद्या प्राप्ति एवं गृह प्रवेश के लिए वसंत पंचमी को पुराणों में भी अत्यंत श्रेयस्कर माना गया है। वसंत पंचमी को अत्यंत शुभ मुहूर्त मानने के पीछे कई कारण हैं।

यह पर्व अधिकतर माघ मास में ही पड़ता है। माघ मास का भी धार्मिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है। इस माह में पवित्र तीर्थों में स्नान करने का विशेष महत्व बताया गया है। दूसरे इस समय सूर्यदेव भी उत्तरायण होते हैं।

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