Kabirji कबीरजी
कबीर का जीवन परिचय | |
नाम | Kabir Das / कबीर दास |
जन्म तिथि | 1398 में ज्येष्ठ पूर्णिमा. |
जन्म स्थान | लहरतारा के पास, काशी. |
मृत्यु | 1518(aged 120) |
मृत्यु स्थल | मगहर, India. |
निवास | India. |
कार्यक्षेत्र | मानवतावादी, समाज सुधारक, साहित्यकार. |
उपलब्धियां | कबीर ने किसी ग्रन्थ की रचना नहीं की. उनकी मृत्यु के पश्चात उनके शिष्यों ने उनके उपदेशों का संकलन किया जो ‘बीजक’ नाम से जाना जाता है. इस ग्रन्थ के तीन भाग हैं, ‘साखी’, ‘सबद’ और ‘रमैनी’. कबीर के उपदेशों में जीवन की दार्शनिकता की झलक दिखती है. गुरू-महिमा, ईश्वर महिमा, सतसंग महिमा और माया का फेर आदि का सुन्दर वर्णन मिलता है. |
कबीर के दोहे
1.
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ |
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ ||
अर्थ : जो जैसा प्रयत्न करते हैं, वे वैसा पा ही लेते हैं. जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है वो कुछ ले कर ही आता है. लेकिन कुछ बेचारे लोग ऐसे भी होते हैं जो डूबने के डर से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और कुछ नहीं कर पाते हैं.
2.
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब |
पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगो कब ||
अर्थ : कबीर दास जी समय की महत्ता बताते हुए कहते हैं कि जो कल करना है उसे आज करो और जो आज करना है उसे अभी करो. जीवन बहुत छोटा होता है पल भर में ख़त्म हो सकता है, फिर तुम कब कर लोगे !!
3.
साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय |
सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय ||
अर्थ : इस संसार में ऐसे सज्जनों की जरूरत है जैसे अनाज साफ़ करने वाला सूप होता है. जो सार्थक को अपना लें, और निरर्थक को थोथे फूस की तरह उड़ा दें.
4.
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय |
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ||
अर्थ : मन में धीरज रखने से सब कुछ होता है. अगर कोई माली किसी पेड़ को सौ घड़े पानी से सींचे तब भी फल तो ऋतु आने पर ही लगेगा !
5.
निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय |
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय ||
अर्थ : जो हमारी निंदा करता है, उसे अपने अधिकाधिक पास ही रखना चाहिए. वह तो बिना साबुन और पानी के हमारी कमियां बता कर हमारे स्वभाव को साफ़ करता है.
6.
लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट |
पाछे फिर पछ्ताओगे, प्राण जाहि जब छूट ||
अर्थ : कबीर दस जी कहते हैं कि अभी राम नाम की लूट मची है, अभी तुम भगवान् का जितना नाम लेना चाहो ले लो नहीं तो समय निकल जाने पर, अर्थात मर जाने के बाद पछताओगे कि मैंने तब राम भगवान् की पूजा क्यों नहीं की.
7.
कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर |
ना काहू से दोस्ती, न काहू से बैर ||
अर्थ : इस संसार में आकर कबीर अपने जीवन में बस यही चाहते हैं कि सबका भला हो और संसार में यदि किसी से दोस्ती नहीं तो दुश्मनी भी न हो !
8.
बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि |
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि ||
अर्थ : यदि कोई सही तरीके से बोलना जानता है तो उसे पता है कि वाणी एक अमूल्य रत्न है. इसलिए वह ह्रदय के तराजू में तोलकर ही उसे मुंह से बाहर आने देता है.
9.
माँगन मरण समान है, मति माँगो कोई भीख |
माँगन ते मारना भला, यह सतगुरु की सीख ||
अर्थ : माँगना मरने के बराबर है, इसलिए किसी से भीख मत मांगो. सतगुरु कहते हैं कि मांगने से मर जाना बेहतर है, अर्थात पुरुषार्थ से स्वयं चीजों को प्राप्त करो, उसे किसी से मांगो मत.
10.
साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय |
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ||
अर्थ : कबीर दस जी कहते हैं कि परमात्मा तुम मुझे इतना दो कि जिसमे बस मेरे गुजरा चल जाये. मैं खुद भी अपना पेट पाल सकूँ और आने वाले मेहमानो को भी भोजन करा सकूँ.
11.
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय |
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ||
अर्थ : बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए, पर सभी विद्वान न हो सके. कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले, अर्थात प्यार का वास्तविक अर्थ समझ ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा.
12.
दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोय |
जो सुख में सुमिरन करे, दुःख काहे को होय ||
अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि दुःख के समय सभी भगवान् को याद करते हैं पर सुख में कोई नहीं करता. यदि सुख में भी भगवान् को याद किया जाए तो दुःख हो ही क्यों !
मगहर में कबीरजी का समाधिस्थल
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