महान संस्कृत श्लोक∗
– Great Sanskrit Shlok –
1.
सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया: ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दु:ख भाग्भवेत् ॥
अर्थ : सभी सुखी हों, सभी निरोगी हों, सभी को शुभ दर्शन हों और कोई दु:ख से ग्रसित न हो.
2.
अष्टादस पुराणेषु व्यासस्य वचनं द्वयम् ।
परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम् ॥
अर्थ : अट्ठारह पुराणों में व्यास के दो ही वचन हैं : 1. परोपकार ही पुण्य है. और 2. दूसरों को दुःख देना पाप है.
3.
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म, तस्मै श्रीगुरवे नमः॥
अर्थ : गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु ही शंकर है; गुरु ही साक्षात् परम् ब्रह्म है; उन सद्गुरु को प्रणाम.
4.
यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवताः।
यत्र तास्तु न पूज्यंते तत्र सर्वाफलक्रियाः॥
अर्थ : जहाँ नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं. जहाँ इनकी पूजा नहीं होती है, वहां सब व्यर्थ है.
5.
स्वगृहे पूज्यते मूर्खः स्वग्रामे पूज्यते प्रभुः।
स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान्सर्वत्र पूज्यते॥
अर्थ : मूर्ख की अपने घर पूजा होती है, मुखिया की अपने गाँव में पूजा होती है, राजा की अपने देश में पूजा होती है विद्वान् की सब जगह पूजा होती है.
6.
शान्ति पाठ
ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष शान्ति:पृथिवी शान्तिराप:
शान्तिरोषधय: शान्ति: वनस्पतय: शान्तिर्विश्वेदेवा: शान्तिर्ब्रह्म
शान्ति:सर्वँ शान्ति: शान्तिरेव शान्ति:सामा शान्तिरेधि सुशान्तिर्भवतु।
॥ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ॥
अर्थ : स्वर्ग लोक में शान्ति हो, अंतरिक्ष में शान्ति हो, पृथ्वी पर शान्ति हो, जल में शान्ति हो, औषधियां शान्त हों, वनस्पतियां शान्त हो, विश्व के देव शान्त हो, ब्रह्मदेव शान्त हों, सर्वत्र शान्ति हो, शान्ति ही शान्त हो, सम्पूर्ण शांति हो, मुझे शान्ति प्राप्त हो, सर्वत्र शुभ शान्ति हो.
॥ॐ शान्ति, शान्ति, शान्ति॥
7.
असतो मा सदगमय ॥ तमसो मा ज्योतिर्गमय ॥ मृत्योर्मामृतम् गमय ॥
अर्थ : हमको – असत्य से सत्य की ओर ले चलो। अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो.
8.
गीता उपदेश
(अध्याय – 2 श्लोक – 47)
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
अर्थ : “आपको अपने निर्धारित कर्तव्य का पालन करने का अधिकार है, लेकिन आप कभी कर्म फल की इच्छा से कर्म मत करो. (कर्म फल देने का अधिकार सिर्फ ईश्वर को है). कर्म फल की अपेक्षा से आप कभी कर्म न करें, न ही आपकी कभी कर्म न करने की प्रवृति हो. (आपकी हमेशा कर्म करने में प्रवृति हो).” – श्री कृष्ण भगवान (अर्जुन से कहा).
कठिन-शब्दार्थ
कर्मण्य = कर्म करना, कर्तव्य करना (In the work)
एव = मात्र, Only
अधिकार = Right
ते = आपका
कर्मफल = कर्म का परिणाम या फल
हेतु = कारण, इच्छा, motive
भु = होना
संग = साथ, जुड़ा हुआ
अस्तु = होने देना, Let there be
अकर्मणि = कर्म न करना
9.
गायत्री मंत्र
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
अर्थ : उस प्राण स्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अंतःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे. अर्थात् सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परमात्मा के प्रसिद्ध पवणीय तेज का (हम) ध्यान करते हैं, वे परमात्मा हमारी बुद्धि को (सत् की ओर) प्रेरित करें.
कठिन-शब्दार्थ
गायत्री – पंचमुख़ी देवी है, हमारी पांच इंद्रियों और प्राणों की देवी मानी जाती है.
ॐ = प्रणव (वह शब्द, जिससे ईश्वर की अच्छी प्रकार से स्तुति की जाये – ॐ)
भूर = मनुष्य को प्राण प्रदान करने वाला
भुवः = दुख़ों का नाश करने वाला
स्वः = सुख़ प्रदान करने वाला
तत = वह, सवितुर = सूर्य की भांति उज्जवल
वरेण्यं = सबसे उत्तम
भर्गो = कर्मों का उद्धार करने वाला
देवस्य = प्रभु
धीमहि = आत्म चिंतन के योग्य (ध्यान)
धियो = बुद्धि
यो = जो
नः = हमारी
प्रचोदयात् = हमें शक्ति दें (प्रार्थना)
9.
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत: ।
अभ्युथानम अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम ॥
अर्थ : जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं अपने रूप को रचता हूँ यानि साकार रूप से संसार में प्रकट होता हूँ.
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