उल्टी गंगा
एक बनिया था। भला था। भोला था। नीम पागल था। एक छोटी सी दुकान चलाता था, दाल,मुरमुरे, रेवड़ी जैसी चीजें बेचता था और शामतक दालरोटी का जुगाड़ कर लेता था। एक रोज दुकान बंदकर देर रात वह अपने घर जा रहा था,तभी रास्तेमें उसेकुछ चोर मिले। बनियेनेचोरोंसेपूछा,इस वक्त अँधेरेमेंआप लोग कहाँ जा रहेहैं? चोर बोले,भैया,हम तो सौदागर हैं। आप हमें क्योंटोक रहे हैं? बनियेनेकहा,लेकिन एक पहर रात बीतनेकेबादआप जा कहाँ रहेहैं? चोर बोले,मालखरीदने। बनियेनेपूछा,माल नकदखरीदोगेया उधार ? चोर बोले,न नकद,न उधार। पैसेतोदेने ही नहींहैं। बनियेनेकहा, आपका यह पेशा तो बहुत बढ़िया है। क्या आप मुझेभी अपनेसाथ ले चलेंगे? चोर बोले,चलिए। आपको फ़ायदा ही होगा। बनियेनेकहा,बात तो ठीक है। लेकिन पहलेयह तो बताओ कि यह धंधा कैसे किया जाता है? चोर बोले,लिखो किसी के घर केपिछवाड़े...बनियेनेकहा,लिखा। चोर बोले,चुपचाप सेंध लगाना...बनियेने कहा,लिखा। चोर बोले, फिर दबेपाँव घर में घुसना...बनियेनेकहा,लिखा। चोर बोले, जो भी लेना हो,सो इकट्ठा करना... बनियेने कहा,लिखा। चोर बोले, न तोमकान मालिक सेपूछना और न उसेपैसेदेना... बनियेने कहा,लिखा। चोर बोले, जो भी माल मिले उसेलेकर घर लौट जाना। बनियेनेसारी बातें कागज पर लिख लींऔर लिखा हुआ कागज जेबमेंडाल लिया।
बाद मेंसबचोरी करनेनिकले। चोर एक घर मेंचोरी करने घुसेऔर बनिया दूसरे घर में चोरी करनेपहुँचा। वहाँ उसनेठीक वही किया जो कागज मेंलिखा था। पहलेपिछवाड़ेसेंध लगाई। दबेपाँवघर मेंघुसा। दियासलाई जलाकर दीया जलाया। एक बोरा खोजकर उसमेंपीतलकेछोटेबड़ेबरतनबड़ी बेफ़िक्री सेभरनेलगा। तभी एक बड़ा तसला उसके हाथ से गिरा और सारा घर उसकी आवाज सेगूँज उठा। घर केलोग जाग गए। सबनेचोरचोर चिल्लाकर बनियेकोघेर लिया और उसे मारनेपीटनेलगे। बनियेको ताज्जुब हुआ। मार खातेउसनेअपनी जेबमेंरखा कागज निकाला और उसेएक नजर पढ़ डाला। फिर तो वह जोश मेंआ गया। जब सबलोग उसकी मरम्मत कर रहेथे, तब बनिया बोला—भाइयों,यह तो लिखापढ़ी से बिलकुलउलटा हो रहा है। यहाँ तो उलटी गंगा बह रही है। बनियेकी बात सुनकर सब सोच मेंपड़ गए। मारनापीटना रोककर सबने पूछा,यह तुमक्या बक रहेहो ?बनियेने कहा,लीजिए,यह कागज देख लीजिए। इसमें कहींपिटाई का जिक्र है ?घर केलोग तुरंत समझ गए। उन्होंनेबनियेको घर सेबाहर धकेल दिया। सोचविचारकर किया कार्य कभी कष्टदायक नहीं होता है।
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