कहानियों में छिपा है जिंदगी का सार
कहानियां जीवन का एक अभिन्न हिस्सा हुआ करती है। हम अपने बचपन की तरफ देखें तो याद आता है, दादी-नानी की रात को सुनाई जाने वाली कहानियां, दोस्तों के बीच भूतों, जानवरों और जादू की कहानियां... स्कूल में पढ़ाई जाने वाली किताबों में कहानियां।
किताबों में कहानियां और कहानियों की किताबें...। हम सोचें कि हमने कहानियों की उम्र पार कर ली है, लेकिन फिर भी हमें हर कहीं कहानियां ही नजर आती है। टीवी पर कहानियां, फिल्मों में कहानियां, उपन्यास में कहानी, जीवन में कहानी यहां तक कि बातों में भी हम कहानियां ही ढूंढते हैं।
यहां तक कि सारे धर्मग्रंथ भी कहानियों की शक्ल में ही हमारे सामने आते हैं। क्यों न हो आखिर जीवन कहानी ही तो है। आपकी-हमारी सबकी कहानी... कहानियां इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसी से हम संबंद्ध होते हैं, इसी से प्रेरित और इसी से सीख भी पाते हैं। तभी तो बच्चों को सिखाने के लिए कहानियों का इस्तेमाल होता है बड़ों को समझाने के लिए भी, कहानियां ही काम आती हैं।
पूरी दुनिया में धर्माों के पास नैतिकता का दंड होता है। समाज में नैतिकता, प्रेम और न्याय का दंड या अधिकार धर्माों के पास हुआ करता है। इसे यूं भी समझा जा सकता है कि सृष्टि में सुव्यवस्था के लिए न्याय की अवधारणा से पहले धर्म ने भूमिका संभाली थी और उसी के पास सुव्यवस्था की जिम्मेदारी भी आई... तो जाहिर है उसे इसने निभाना भी था।
व्यवस्थाकार बहुत दूरदृष्टा लोग थे, उन्होंने इंसानी मनोविज्ञान को समझ लिया था। तभी तो हर कहानी में एक संदेश गूंथा गया... या फिर ऐसे कि हर संदेश को एक कहानी के माध्यम से कहा गया। ताकि वो चेतना की गहराई तक उतरे और हमारी स्मृतियों में देर तक ताज़ा रहे।
छाहे दुनिया के किसी भी धर्मग्रंथ को उठाकर देखे लें, भाषा चाहे जो हो, क्षेत्र जो हो... अपनी बात कहने के लिए कथाओं को ही माध्यम बनाया गया है। गुजरे कुछ सालों में स्कूली शिक्षा में हुए प्रयोगों और अनुसंधानों में भी यही बात स्पष्ट होकर उभरी है कि बच्चों को यदि कुछ सिखाना चाहते हैं तो कहानियों का उपयोग किया जाए। और तो और पिछले कुछ सालों में व्यापार बढ़ाने में और प्रबंधन के क्षेत्र में भी कहानियों का उपयोग किया जा रहा है।
यूं देखा जाए तो कहानियां है क्या...? जीवन ही तो न... जो कुछ जीवन में घटता है, उसे रोचक और मनोरंजक तरीके से कह देना... बस यही तो है कहानी और ये कहानी तब ज्यादा उद्देश्यपरक हो जाती है, जब उसके माध्यम से हम कुछ सार्थक कहना चाहते हैं। तो... कहानी सुनिए, सुनाइए... हो सके तो कहानी बनाइए।
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