सर्वव्यापी है चेतना
अध्यात्म मानता है कि सृष्टि के मूल में एक ही शक्ति या चेतना है। जब वह जड़ पदार्र्थो से संयोग करती है, तो जीवों के रूप में व्यक्त होती है। हमारे वैज्ञानिकों ने भी चेतना के बारे में अवधारणाएं दी हैं..
महान वैज्ञानिक न्यूटन के अनुसार, हमारा मस्तिष्क ज्ञान की खोज करते-करते जिस बिंदु पर पहुंचता है, वह शाश्वत चेतना ही है। सृष्टि का कोई कण चेतना से वंचित नहीं है, परमात्मा इसी रूप में विश्वव्यापी है।
आइंस्टीन के अनुसार, सृष्टि के मूल में कोई जड़ तत्व नहीं, बल्कि चेतना की सक्रियता ही है। मनुष्य के साथ-साथ पृथ्वी और अन्य नक्षत्र-ग्रहों की भी अपनी एक चेतना है। वह मनुष्य के समान ही कतिपय सिद्धांतों पर कार्य करती है। संपूर्ण संसार की रचना किसी अद्भुत मस्तिष्क के द्वारा की हुई प्रतीत होती है। भौतिकी के आचार्य रॉबर्ट मायर ने ऊर्जा के दर्शन पर जो खोजें की हैं वे बताती हैं कि उसकी अधिकाधिक सूक्ष्म स्थिति में जो तत्व शेष रह जाता है, उसे चेतना की संज्ञा दी जा सकती है। यह उच्च स्तर पर एकरस और सर्वव्यापी स्थिति में बनी रहती है।
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