*धीरे-धीरे कितने नाजायज खर्च से जुड़ते चले गये हैं हम..(देखें)*
● टॉयलेट धोने का हार्पिक अलग...
● बाथरूम धोने का अलग...
● टॉयलेट की बदबू दूर करने के लिये खुशबू छोड़ने वाली टिकिया भी जरुरी है...
● कपड़े हाथ से धो रहे हों तो अलग वाॅशिंग पाउडर...
और...
मशीन से धो रहे हों तो खास तरह का पाउडर...
(नहीं तो आपकी 20,000/- रूपयों की मशीन बकेट से ज्यादा कुछ नहीं।)
● और हाँ, कॉलर का मैल हटाने का व्हैनिश तो घर में होगा ही...
● हाथ धोने के लिये नहाने वाला साबुन तो दूर की बात...
● लिक्विड ही यूज करो, साबुन से कीटाणु ''ट्रांसफर'' होते हैं...
(ये तो वही बात हो गई कि, कीड़े मारने वाली दवा में कीड़े पड़ गये।)
● बाल धोने के लिये शैम्पू ही पर्याप्त नहीं...
● कंडीशनर भी जरुरी है...
● फिर बॉडी लोशन...
● फेस वाॅश...
● डियोड्रेंट...
● हेयर जेल...
● सनस्क्रीन क्रीम...
● स्क्रब...
● ''गोरा'' बनाने वाली क्रीम लेना अनिवार्य है ही...
● और हाँ दूध (जो खुद शक्तिवर्धक है) की शक्ति बढ़ाने के लिये हॉर्लिक्स मिलाना तो नहीं भूले हैं न आप...?
● मुन्ने का हॉर्लिक्स अलग...
● मुन्ने की मम्मी का अलग...
● और मुन्ने के पापा का डिफरेंट...
● साँस की बदबू दूर करने के लिये ब्रश करना ही पर्याप्त नहीं, माउथ वाश से कुल्ले करना भी जरुरी है.
तो श्रीमान जी,
10-15 साल पहले जिस घर का खर्च 8 हजार में आसानी से चल जाता था, आज उसी का बजट 40 हजार को पार कर गया है। तो उसमें सारा दोष महंगाई का ही नहीं है।
कुछ हमारी बदलती सोच भी है। और दिन-रात टीवी पर दिखाये जाने वाले विज्ञापनों का परिणाम भी है।
सोचें..
सीमित साधनों के साथ स्वदेशी जीवन शैली अपनायें और देश का पैसा बचायें।
जितना हो सके साधारण जीवन शैली अपनायें।
केवल सरकार को कोसने से कुछ नहीं होगा।
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