गुरुवार, 18 जनवरी 2018

राजस्थान की क्षेत्रीय बोलियां ki detail

राजस्थान की क्षेत्रीय बोलियां

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राजस्थान की बोलियों को निम्न भागों में बांटा गया है

⚡⚡पश्चिमी राजस्थान की प्रतिनिधि बोलियां-: मारवाड़ी मेवाड़ी बागड़ी शेखावाटी

⚡⚡ पूर्वी राजस्थान की प्रतिनिधि बोलियां-: ढूंढाड़ी हाडोती मेवाती अहीरवाटी

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⚡⚡मारवाड़ी मारवाड़ी का आरंभ काल 8 वीं सदी से माना जाता है विस्तार एवं साहित्य दोनों ही दृष्टियों से यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं समृद्ध है इसका विस्तार जोधपुर बीकानेर जैसलमेर पाली नागौर जालौर सिरोही जिला तक है मारवाड़ी के साहित्यक रूप को डिंगल कहा जाता है इसकी उत्पत्ति गुर्जरी अपभ्रंश से हुई है

⚡⚡ मेवाड़ी उदयपुर में इसके आसपास के क्षेत्र को मेवाड़ कहते हैं इसलिए यहां की बोली मेवाड़ी कहलाती है मेवाड़ी बोली के विकसित और शिष्ट रूप के दर्शन हमें 12वीं 13वीं शताब्दी में ही मिलने लगते हैं यह मारवाड़ी के बाद राजस्थान की महत्वपूर्ण बोली है

⚡⚡ वागड़ी डूंगरपुर बांसवाड़ा के सम्मिलित क्षेत्र का प्राचीन नाम बागड़ था वहां की बोली वागडी कहलाई जिस पर गुजराती का प्रभाव अधिक है यह मेवाड़ के दक्षिणी भाग दक्षिणी अरावली प्रदेश तथा मालवा की पहाड़ियों तक के क्षेत्र में बोली जाती है

⚡⚡ शेखावाटी यह मारवाड़ी की ही उपबोली है राज्य के शेखावाटी क्षेत्र सीकर झुंझुनू तथा चूरु जिलों के कुछ क्षेत्र में बोली जाती है जिस पर मारवाड़ी ढूंढाड़ी का पर्याप्त प्रभाव दिखाई देता है

⚡⚡ ढूंढाड़ी उत्तरी जयपुर को छोड़कर शेष जयपुर किशनगढ़ टोंक Lava तथा अजमेर मेरवाड़ा के पूर्वी अंचलों में बोली जाने वाली भाषा ढूंढाड़ी कहलाती है इस पर गुजराती मारवाड़ी एवं बृज भाषा का प्रभाव समान रुप से मिलता है इस बोली को जयपुरी या झाड़ शाही भी कहते हैं

⚡⚡ हाडोती कोटा बूंदी बारां झालावाड़ का क्षेत्र हाडोती कहलाता था अतः यहां बोली जाने वाली बोली हाडोती कहलाई हाडोती का भाषा के अर्थ में प्रयोग सर्वप्रथम केलॉग की हिंदी ग्रामर में सन 1875 में किया गया इसके बाद अब्राहम ग्रियर्सन ने अपने ग्रंथ में भी हडौती को बोली के रूप में मान्यता दी कवि सूर्य मल मिश्रण की अधिकांश रचनाएं हाडोती में है

⚡⚡ मेवाती अलवर भरतपुर जिला का क्षेत्र मेव जाति की बहुलता के कारण मेवात नाम से जाना जाता है यहां की बोली मेवाती कहलाती है उद्भव एवं विकास की दृष्टि से मेवाती पश्चिमी हिंदी एवं राजस्थानी के मध्य सेतु का कार्य करती है लालदासी एवं चरण दास जी संत संप्रदायों का साहित्य इसी में ही रचा गया है

⚡⚡ अहीरवाटी आभीर जाति के क्षेत्र की बोली होने के कारण इसे हीर वाटी या हीर वाल भी कहते हैं इस बोली के क्षेत्र को राठ कहा जाता है इसलिए इसे राठी भी कहते हैं यह अलवर की बहरोड़ में मंडावर तहसील जयपुर की कोटपूतली तहसील के उत्तरी भाग हरियाणा के गुड़गांव महेंद्रगढ़ नारनौल रोहतक जिले में दिल्ली के दक्षिणी भाग में बोली जाती है यह बांगरू एवं मेवाती के बीच की बोली है

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*वेबसाइट-http://Www.samanyagyanedu.in​​*

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